श्री राम स्तुति | Shree Ram Stuti

श्री राम स्तुति | Shree Ram Stuti

श्री राम केवल एक राजा या योद्धा नहीं थे, बल्कि वे मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूरे विश्व में पूजनीय हैं। उनके नाम के स्मरण मात्र से जीवन में शांति, भक्ति, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हिंदू धर्म में श्री राम स्तुति का विशेष महत्व है। इस स्तुति का पाठ करने से मनुष्य को आध्यात्मिक शक्ति, आत्मिक बल और भक्ति का वरदान प्राप्त होता है। इस लेख में हम जानेंगे कि श्री राम स्तुति क्या है, इसे किसने रचा, इसका पाठ कैसे करें, इसका महत्व और इसके लाभ।

श्री राम स्तुति क्या है | Shri Ram Stuti Kya hai

श्री राम स्तुति एक पावन स्तोत्र है, जो भगवान श्री राम के गुणों, महिमा और शक्ति का गान करता है। यह स्तुति भक्ति से भरपूर है और श्री राम के दयालु, न्यायप्रिय, मर्यादा का पालन करने वाले और भक्तवत्सल स्वरूप का गौरवगान करती है।

इस स्तुति में भगवान श्री राम को चराचर जगत के स्वामी, सर्वशक्तिमान और कल्याणकारी देवता के रूप में वर्णित किया गया है। इसे पढ़ने और सुनने से मन और हृदय को शांति मिलती है।

श्री राम स्तुति की रचना किसने की | Shri Ram Stuti Ki Rachna Kisne ki

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी इसे श्री रामचरितमानस के उत्तरकांड में लिखा है। इसके अलावा वाल्मीकि रामायण, अद्भुत रामायण, और विभिन्न पुराणों में भी श्री राम की स्तुति का उल्लेख मिलता है।

श्री राम स्तुति का पाठ विधि (Shri Ram Stuti Path Vidhi)

1. पाठ का समय:

  • श्री राम स्तुति का पाठ प्रतिदिन सुबह या शाम को किया जा सकता है।
  • विशेष रूप से राम नवमी, विजयादशमी, कार्तिक मास, चैत्र नवरात्रि और एकादशी पर इसका पाठ करना शुभ माना जाता है।

2. आवश्यक सामग्री:

  • एक स्वच्छ स्थान और शुद्ध मन
  • श्री राम जी का चित्र या मूर्ति
  • दीपक, अगरबत्ती और पुष्प
  • तुलसी दल (यदि उपलब्ध हो)
  • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर)

3. पाठ विधि:

  1. स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. श्री राम का ध्यान करें और एक दीपक जलाएं।
  3. श्री राम स्तुति का स्मरण करें या पाठ करें।
  4. पाठ के बाद राम नाम का जप करें – “श्री राम, जय राम, जय जय राम।”
  5. श्री राम के चरणों में फूल अर्पित करें और प्रसाद वितरण करें।

श्री राम स्तुति का महत्व (Shri Ram Stuti Ka Mahatav)

श्री राम स्तुति का पाठ जीवन में कई शुभ परिवर्तन लाता है। यह स्तुति केवल भक्ति का ही प्रतीक नहीं बल्कि यह हमारे मन, विचार और कर्मों को भी शुद्ध करती है। इसका महत्व इस प्रकार है –

  1. आध्यात्मिक उन्नति – यह पाठ आत्मा को शुद्ध करता है और मन को शांत करता है।
  2. नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा – श्री राम स्तुति के नियमित पाठ से नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं।
  3. मानसिक शांति – यह पाठ तनाव और चिंता को कम करता है और व्यक्ति को मानसिक स्थिरता प्रदान करता है।
  4. परिवार में सुख-शांति – श्री राम का नाम लेने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  5. संकटों से रक्षा – यह पाठ जीवन की बाधाओं और कष्टों को दूर करता है।
  6. कर्मों की शुद्धि – श्री राम के गुणों का वर्णन हमें मर्यादा और सच्चाई का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।

श्री राम स्तुति के पाठ से लाभ (Shri Ram Stuti Ke Path Se Labh)

1. मानसिक और आत्मिक शांति:

श्री राम स्तुति के पाठ से मन में शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह नकारात्मक विचारों को दूर करता है और ध्यान एवं साधना को गहरा बनाता है।

2. बुरी शक्तियों से रक्षा:

श्री राम स्तुति का पाठ नकारात्मक शक्तियों और दुष्ट आत्माओं से सुरक्षा प्रदान करता है। यह व्यक्ति के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का कवच बनाता है।

3. कष्टों और विपत्तियों का नाश:

इस स्तुति का नियमित पाठ जीवन में आने वाली परेशानियों को कम करता है और सभी संकटों का निवारण करता है।

4. भाग्य में वृद्धि:

भगवान श्री राम की भक्ति और स्तुति से व्यक्ति के भाग्य का उदय होता है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।

5. पारिवारिक सुख और समृद्धि:

घर में श्री राम स्तुति का पाठ करने से परिवार में सुख, शांति, समृद्धि और परस्पर प्रेम बना रहता है।

श्री राम चंद्र स्तुति (Shri Ram Chandra Stuti)

॥दोहा॥

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन

हरण भवभय दारुणं ।

नव कंज लोचन कंज मुख

कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि

नव नील नीरद सुन्दरं ।

पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि

नोमि जनक सुतावरं ॥२॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव

दैत्य वंश निकन्दनं ।

रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल

चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक

चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।

आजानु भुज शर चाप धर

संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर

शेष मुनि मन रंजनं ।

मम् हृदय कंज निवास कुरु

कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

मन जाहि राच्यो मिलहि सो

वर सहज सुन्दर सांवरो ।

करुणा निधान सुजान शील

स्नेह जानत रावरो ॥६॥

एहि भांति गौरी असीस सुन सिय

सहित हिय हरषित अली।

तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि

मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥

॥सोरठा॥

जानी गौरी अनुकूल सिय

हिय हरषु न जाइ कहि ।

मंजुल मंगल मूल वाम

अङ्ग फरकन लगे।

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