गणगौर तीज 2025: सौभाग्य और श्रद्धा का पर्व | Gangaur Teej 2025

गणगौर तीज 2025: सौभाग्य और श्रद्धा का पर्व | Gangaur Teej 2025

गणगौर तीज भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है | गणगौर का त्यौहार चैत्र महीने में आता है जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार पहला महीना भी है। यह चैत्र महीने के पहले दिन से शुरू होता है, यानी होली के त्यौहार के ठीक बाद और 18 दिनों तक चलता है।जिसे विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व माता पार्वती और भगवान शिव के दिव्य मिलन का प्रतीक है और इसे मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए मनाती हैं। अविवाहित कन्याएं भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक रखती हैं।

गणगौर तीज 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त (Gangaur Teej 2025 ki Tithi Or Shubh Muhurat)

गणगौर तीज का पर्व चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है।

  • गणगौर तीज 2025 तिथि: 31 मार्च 2025 (सोमवार)
  • पूजा का शुभ मुहूर्त: प्रातः 06:30 बजे से दोपहर 12:45 बजे तक (स्थान के अनुसार समय भिन्न हो सकता है, अतः स्थानीय पंचांग देखें।)

गणगौर तीज का पौराणिक महत्व (Gangaur Teej Ka Pauranik Mahatav)

गणगौर तीज माता पार्वती की कठोर तपस्या और भगवान शिव से उनके विवाह की कथा से जुड़ी हुई है।

माता पार्वती की घोर तपस्या

पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उन्होंने कई वर्षों तक बिना जल और अन्न ग्रहण किए भगवान शिव की आराधना की।

माता पार्वती की अटूट भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। यह दिन नारी शक्ति, भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

इसी कारण विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुखद दांपत्य जीवन के लिए इस व्रत को करती हैं, और कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति हेतु माता पार्वती से प्रार्थना करती हैं।

गणगौर पूजन विधि (Gangaur Poojan Vidhi)

गणगौर प्रारंभ होने से लेकर 16 दिन तक महिलाएं हर सुबह जल्दी उठकर माता की पूजा करती  हैं। इस पूजा में माता को दही, सुपारी, चांदी का छल्ला आदि अर्पित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि आठवें दिन भगवान शिव  अपनी पत्नी माता गौरी के साथ ससुराल आते हैं। इस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के घर जाकर वहां से मिट्टी के बर्तन और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लाती हैं। उसी मिट्टी से शिव जी, गणगौर माता की कई मूर्तियां बनाई जाती हैं। जिस स्थान पर पूजा की जाती है उसको गणगौर का मायका और जहां पर मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, वह स्थान उनका ससुराल कहा जाता है।

शादी के उपरांत कन्या पहली बार गणगौर अपने मायके में मनाती है, बाद में प्रतिवर्ष वो अपनी ससुराल में ही गणगौर का पूजन करती है। गणगौर का उद्यापन करते समय स्त्रियां अपनी सास को बायना, कपड़े तथा सुहाग की वस्तुएं देती हैं। साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार की वस्तुएं और दक्षिण दी जाती है

गणगौर पूजन की सामग्री

  • गौरी-शंकर की प्रतिमा (मिट्टी या लकड़ी की)
  • गंगा जल, कलश, सुपारी, हल्दी, कुमकुम, मेहंदी
  • फूल, अक्षत (चावल), गुड़, चना, नारियल
  • मिठाई, श्रृंगार का सामान (सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, महावर)

गणगौर पूजन विधि

  1. प्रतिमा स्थापना: गणगौर पूजन के लिए माता पार्वती और भगवान शिव की प्रतिमा को एक स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें।
  2. शुद्धिकरण: पूजा स्थान और प्रतिमाओं को गंगाजल से शुद्ध करें।
  3. श्रृंगार: माँ गौरी की प्रतिमा को सिंदूर, मेहंदी, चूड़ियों और वस्त्रों से सजाएं।
  4. कथा वाचन: गणगौर व्रत कथा का पाठ करें और श्रद्धा से माता गौरी का ध्यान करें।
  5. भोग अर्पण: माता को गुड़ और चने का भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में इसे वितरित करें।
  6. सिंधारा देने की परंपरा: विवाहित महिलाएं अपने मायके से सिंधारा (श्रृंगार और मिठाई) प्राप्त करती हैं। यह विवाह के बाद पहली गणगौर पर विशेष रूप से मायके से भेजा जाता है।
  7. व्रत समाप्ति: अगले दिन प्रातः नदी या तालाब में गणगौर की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।

गणगौर तीज का महत्व (Gangaur Teej Ka Mahatav)

  1. वैवाहिक जीवन की समृद्धि: इस व्रत को करने से पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम और सौहार्द बना रहता है।
  2. अच्छे वर की प्राप्ति: कुंवारी कन्याएं इस व्रत को शुभ और संस्कारी जीवनसाथी पाने के लिए करती हैं।
  3. परिवार में सुख-शांति: गणगौर माता की कृपा से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
  4. महिलाओं की सामाजिक भूमिका: यह पर्व महिलाओं को अपनी परंपराओं और संस्कृति से जोड़ने का अवसर प्रदान करता है।

गणगौर उत्सव और लोक परंपराएं (Gangaur Utsav Aur Lok Parampara)

राजस्थान में गणगौर का उत्सव

राजस्थान में गणगौर तीज का विशेष महत्त्व है। जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर और जैसलमेर में गणगौर की सवारी निकाली जाती है, जिसमें हजारों की संख्या में महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होती हैं।

  • जयपुर में गणगौर महोत्सव: यहाँ गणगौर माता की विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें ऊंट, घोड़े, हाथी और पारंपरिक लोक नृत्य आकर्षण का केंद्र होते हैं।
  • उदयपुर में गणगौर की सवारी: यहाँ पिछोला झील में गणगौर माता की प्रतिमा का जलविहार कराया जाता है।

लोक गीत और नृत्य

गणगौर के दौरान महिलाएं पारंपरिक गीत गाती हैं और घूमर नृत्य करती हैं। कुछ प्रसिद्ध लोकगीत इस प्रकार हैं:

“गौर गऊरी ने गणगौर म्हारे,
म्हारा पिया जी मुझको लावे,
सांग रंगीला जी लावे।”

गणगौर और वैज्ञानिक महत्व (Gangaur Aur Vaigyanik Mahatav)

गणगौर तीज का वैज्ञानिक आधार भी महत्वपूर्ण है।

  • सर्दी से गर्मी का संक्रमण : यह पर्व ऋतु परिवर्तन के समय आता है और नए मौसम के अनुकूल शरीर को ढालने में सहायक होता है।
  • मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति : व्रत और पूजा से मन में शांति और सकारात्मकता बनी रहती है।
  • सामाजिक समरसता : यह पर्व समाज को एकजुट करने और पारंपरिक मूल्यों को आगे बढ़ाने का कार्य करता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

गणगौर तीज केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नारी शक्ति, प्रेम, भक्ति और पारिवारिक सौहार्द का प्रतीक है। यह पर्व हर नारी को अपनी आस्था, परंपरा और आत्मिक शक्ति से जोड़ने का अवसर देता है।

“गणगौर माता का आशीर्वाद सब पर बना रहे,
हर स्त्री का जीवन सुख-समृद्धि से भरा रहे।”

आप सभी को गणगौर तीज 2025 की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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