गोवर्धन परिक्रमा एक आध्यात्मिक और पुण्यदायक यात्रा है, जो ब्रजभूमि में स्थित गोवर्धन पर्वत के चारों ओर श्रद्धापूर्वक की जाती है। यह यात्रा न केवल श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को दर्शाती है, बल्कि ब्रज की उस दिव्यता का अनुभव भी कराती है जहाँ स्वयं भगवान ने बाल लीला की थी।
गोवर्धन परिक्रमा क्या है | Govardhan Parikrama Kya hai
“परिक्रमा” का अर्थ है — श्रद्धा और भक्ति के साथ किसी पूज्य वस्तु के चारों ओर घूमना। गोवर्धन परिक्रमा में भक्तजन पैदल चलकर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। यह परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर लंबी होती है और इसे करने से अत्यंत पुण्य प्राप्त होता है। इस परिक्रमा की शुरुआत ‘मुखराई गाँव’ से मानी जाती है और इसका समापन भी यहीं होता है।
गोवर्धन परिक्रमा का धार्मिक महत्व | Govardhan Parikrama ka Dharmik Mahatav
- श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्थल: गोवर्धन वह पर्वत है जिसे श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर उठाकर इंद्र के घमंड का विनाश किया और ब्रजवासियों की रक्षा की।
- गोवर्धन = श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरूप: शास्त्रों में गोवर्धन को श्रीकृष्ण का ही रूप माना गया है। अतः उसकी परिक्रमा श्रीकृष्ण की परिक्रमा के समान मानी जाती है।
- मनोकामना पूर्ति का माध्यम: ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से की गई परिक्रमा से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं — चाहे वो स्वास्थ्य, संतान, विवाह, या आत्मिक शांति हो।
परिक्रमा के नियम | Parikrama Ke Niyam
- नंगे पैर परिक्रमा करना चाहिए।
- चलते हुए ‘राधे राधे’ या ‘गोवर्धननाथ की जय’ का जाप करना चाहिए।
- परिक्रमा दक्षिणावर्त (दायीं ओर) होती है।
- भूमि को प्रणाम (साष्टांग दंडवत) करते हुए परिक्रमा भी की जाती है, जिसे “ससाष्ठांग परिक्रमा” कहा जाता है।
- गायों, वृक्षों, साधु-संतों और ब्रजवासियों का सम्मान करें।
- यात्रा के दौरान पवित्रता बनाए रखें और प्लास्टिक, कूड़ा या अपवित्र वस्तुएँ न फेंकें।
गोवर्धन परिक्रमा में आने वाले प्रमुख स्थल | Govardhan Parikrama Me Aane Wale Pramukh Sthal
- मुखराई गाँव
परिक्रमा की शुरुआत यहीं से होती है। यहाँ मुखरविंद श्री राधा रानी का स्थान है। भक्तजन यहाँ गोवर्धन को प्रणाम कर यात्रा आरंभ करते हैं।
- रत्न सिंहासन
यह वह स्थल है जहाँ श्री राधारानी के सिंहासन पर विराजमान होती थी। यहाँ साधक ध्यान लगाकर रासलीला का स्मरण करते हैं।
- श्याम कुटी
यह स्थान रत्न सिंहासन के पास ही स्थित है यहाँ श्री श्यामसुन्दर श्याम रंग की कस्तूरी, श्याम रंग के वस्त्र , श्याम रंग के अलंकार पहन कर निकुंज में प्रवेश करते थे तब गोपिया उन्हें पहचान नहीं पाई थी | यह स्थान अत्यंत रमणीय और मन को शांत करने वाला है।
- कुसुम सरोवर
यह एक सुंदर सरोवर है जहाँ राधा रानी पुष्प चुनने आया करती थीं। यहां स्नान और ध्यान का विशेष महत्व है। यहाँ प्राचीन घाट और छतरियाँ स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण हैं।
- गोवर्धन गाँव
यहाँ परिक्रमा का प्रमुख भाग आता है, जहाँ पर्वत के चारों ओर की परिक्रमा सबसे सजीव अनुभव कराती है। यहाँ बहुत से छोटे मंदिर और साधु-संतों की कुटियाँ हैं।
- मानसी गंगा
यह पवित्र जलसरोवर है, जो श्रीकृष्ण की इच्छा मात्र से प्रकट हुआ था। परिक्रमा के मध्य में स्नान और पूजा के लिए यह विशेष स्थान है। यहाँ नौका विहार का भी विशेष अनुभव होता है।
- श्रीनाथ जी का प्राकट्य स्थल
यहीं से श्रीनाथजी (श्रीकृष्ण का बाल रूप) की मूर्ति प्रकट हुई थी। वल्लभाचार्य द्वारा इस मूर्ति की स्थापना की गई थी। यह स्थल विशेष रूप से वल्लभ संप्रदाय के लिए पूजनीय है।
- पूंछरी का लोटा
यह गोवर्धन पर्वत का अंतिम छोर माना जाता है और इसे पर्वत की पूंछ कहा जाता है। यह स्थल ब्रह्मा जी की तपस्थली भी है। यहाँ शांति से बैठकर ध्यान करने का विशेष अनुभव होता है।
- गोविंद कुंड
परिक्रमा के अंत में यह अत्यंत पवित्र स्थल आता है, जहाँ श्रीकृष्ण ने इंद्र के क्रोध से ब्रज की रक्षा करने के बाद स्नान किया था। यहाँ कुंड के तट पर विशेष पूजा की जाती है।
गोवर्धन परिक्रमा का श्रेष्ठ समय | Goverdhan Parikrama Ka Shrestha Samay
- कार्तिक मास (अक्टूबर-नवंबर) में विशेष रूप से पूर्णिमा और गोवर्धन पूजा के दिन परिक्रमा का अत्यधिक महत्व होता है।
- गुरु पूर्णिमा, अन्नकूट महोत्सव, और श्रावण मास की एकादशियों पर भी परिक्रमा फलदायक मानी जाती है।
- शीत ऋतु (अक्टूबर से फरवरी) यात्रा के लिए उपयुक्त होती है, क्योंकि गर्मी में परिक्रमा कठिन हो सकती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
गोवर्धन परिक्रमा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भक्ति, प्रेम, और आत्मिक शुद्धता की पदयात्रा है। इस यात्रा में हर कदम श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित होता है, हर स्थल उनकी लीलाओं का साक्षी है, और हर भक्त इस भूमि में ईश्वर के स्पर्श का अनुभव करता है।
परिक्रमा के दौरान गूंजते भजन, राधे-राधे की ध्वनि, और श्रद्धालु भक्तों की भावभंगिमा इस अनुभव को स्वर्गीय बना देती हैं। यदि आपने ब्रजभूमि की परिक्रमा नहीं की, तो जैसे श्रीकृष्ण की एक झलक अधूरी रह गई। यह यात्रा तन, मन और आत्मा तीनों को पवित्र करने वाली है।
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