भारत की चार दिशाओं में चार पवित्र तीर्थ स्थल स्थित हैं जिन्हें ‘चार धाम’ कहा जाता है। ये धाम हैं- बद्रीनाथ (उत्तर), द्वारका (पश्चिम), रामेश्वरम (दक्षिण) और जगन्नाथ पुरी (पूर्व)। इन धामों का प्रचार आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया था | माना जाता है कि इन चारों धामों की यात्रा करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सभी पापों का क्षय होता है। इन तीर्थ स्थलों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भारतीय सभ्यता का अभिन्न हिस्सा है। आइए, इन पवित्र स्थलों की पौराणिक कथाओं, महत्व, यात्रा की जानकारी और मंदिरों की विशेषताओं को विस्तार से जानें।
भारत का यह पहला धाम सतयुग से जुड़ा हुआ हैं | बद्रीनाथ धाम, उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। यह धाम भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे विष्णु के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है।
बद्रीनाथ धाम के बारे में स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में अनेक कथाएँ वर्णित हैं। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने यहां घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रभावित होकर देवी लक्ष्मी ने बद्री वृक्ष का रूप धारण कर उन्हें कड़ी धूप और बर्फ़ से बचाया। इसलिए, इस स्थान को ‘बद्रीनाथ’ कहा गया। एक और कथा के अनुसार, भगवान नारद ने बद्रीनाथ में तपस्या की थी और भगवान विष्णु को दर्शन दिए थे।
बद्रीनाथ मंदिर एक प्रमुख उत्तर भारतीय वास्तुकला का उदाहरण है। मंदिर में एक बड़ा गुंबद है जिसे स्वर्ण कलश से सजाया गया है। मंदिर की दीवारों पर विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और चित्र हैं। मंदिर का मुख्य द्वार ‘सिंह द्वार’ है और गर्भगृह में काले पत्थर से बनी भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति है, जो उन्हें ध्यान की मुद्रा में दर्शाती है।
बद्रीनाथ की यात्रा का सर्वोत्तम समय मई से जून और सितंबर से अक्टूबर तक का है। सर्दियों के दौरान यहां भारी बर्फबारी होती है जिससे मंदिर बंद रहता है। गर्मियों में यात्रा आरामदायक होती है और भक्त प्राकृतिक सुंदरता का भी आनंद ले सकते हैं।
बद्रीनाथ धाम पहुंचने के लिए ऋषिकेश और हरिद्वार निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट निकटतम हवाई अड्डा है। यहां से सड़क मार्ग द्वारा बद्रीनाथ पहुंचा जा सकता है, जो गढ़वाल की पहाड़ियों की सुंदरता से भरपूर है।
Official Website: Badrinath Dham
तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित रामेश्वरम धाम भगवान शिव को समर्पित है। इसे ‘दक्षिण का काशी’ भी कहा जाता है। रामेश्वरम मंदिर में भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजित है l
रामेश्वरम की स्थापना का वर्णन रामायण में मिलता है। कहा जाता है कि जब भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने का निश्चय किया था, तो उन्होंने यहां पर भगवान शिव की पूजा की थी। इस शिवलिंग को रामलिंगम कहा जाता है। श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भारत की 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक है ।
रामेश्वरम में स्थित रामनाथस्वामी मंदिर भारत के सबसे सुंदर मंदिरों में से एक है। यह द्रविड़ वास्तुकला शैली में बना है और इसमें भव्य गोपुरम हैं। मंदिर का गलियारा 1,200 मीटर लंबा है, जो इसे दुनिया का सबसे लंबा मंदिर गलियारा बनाता है। मंदिर में पत्थरों की नक्काशी और स्तंभों की सुंदरता देखने लायक है ।
रामेश्वरम की यात्रा के लिए अक्टूबर से अप्रैल का समय उपयुक्त है। इस दौरान मौसम ठंडा और आरामदायक होता है। मानसून के दौरान यहां भारी बारिश होती है, इसलिए इस समय यात्रा करने से बचना चाहिए ।
रामेश्वरम का निकटतम रेलवे स्टेशन रामेश्वरम ही है। मदुरै का एयरपोर्ट निकटतम हवाई अड्डा है, जहां से बस या टैक्सी द्वारा रामेश्वरम पहुंच सकते हैं ।
Official Website: Rameshwaram Dham
द्वारका धाम गुजरात राज्य के पश्चिमी तट पर स्थित है। इसे भगवान श्रीकृष्ण की पवित्र नगरी माना जाता है और यह हिंदू धर्म के सात पवित्र पुरियों में से एक है l अरब सागर के तट पर बसी द्वारिका नगरी में भगवान श्री कृष्ण साक्षात रूप से निवास करते हैं l
द्वारका का उल्लेख महाभारत, विष्णु पुराण, और स्कंद पुराण में मिलता है। श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़कर द्वारका को अपनी राजधानी बनाई थी। यह भी माना जाता है कि द्वारका का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने भगवान कृष्ण के आदेश पर किया था। द्वारका की समुद्र में डूबी प्राचीन नगरी का भी उल्लेख है, जिसे शोधकर्ताओं ने समुद्र के अंदर खोजा है ।
द्वारकाधीश मंदिर नागर शैली की वास्तुकला में निर्मित है। इसका निर्माण चूने के पत्थरों से हुआ है और यह मंदिर समुद्र के किनारे स्थित है। मंदिर में पाँच मंजिलें हैं और 72 स्तंभ हैं। मंदिर के शीर्ष पर स्थित ध्वजा प्रतिदिन बदलता है, जो यहां की एक महत्वपूर्ण परंपरा है ।
द्वारका की यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है। इस दौरान यहां का मौसम ठंडा और सुखद रहता है। गर्मियों में यहां की यात्रा करना कष्टदायक हो सकता है, क्योंकि तापमान अधिक हो जाता है ।
द्वारका का निकटतम रेलवे स्टेशन द्वारका है। जामनगर हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है, जहां से बस या टैक्सी द्वारा द्वारका पहुंच सकते हैं। गुजरात राज्य परिवहन की बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं ।
Official Website: Dwarka Dham
ओडिशा राज्य के तट पर स्थित जगन्नाथ पुरी धाम भगवान विष्णु के अवतार जगन्नाथ को समर्पित है। इसे ‘पूर्व का द्वारका’ भी कहा जाता है। यहां श्री नारायण जगन्नाथ जी के रूप में अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं l
जगन्नाथ पुरी की कथा ब्रह्म पुराण और स्कंद पुराण में वर्णित है। मान्यता है कि राजा इंद्रद्युम्न की भक्ति से प्रसन्न होकर श्री भगवान चार विग्रहों में प्रकट हुए, भगवान के श्री विग्रह बनाने का काम भगवान विश्वकर्मा द्वारा किया गया था l यहां हर साल रथ यात्रा का आयोजन होता है, जो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विशाल रथों के खींचने के कारण प्रसिद्ध है ।
जगन्नाथ मंदिर कलिंग वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर का शिखर लगभग 65 मीटर ऊँचा है और इसके शीर्ष पर नीलचक्र स्थित है। मंदिर का मुख्य शिखर ‘श्री मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। मंदिर की दीवारों पर सुंदर नक्काशी और मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं ।
जगन्नाथ पुरी की यात्रा के लिए अक्टूबर से फरवरी का समय सबसे अच्छा है। इस दौरान यहां का मौसम ठंडा और सुखद होता है। जून-जुलाई में होने वाली रथ यात्रा भी एक महत्वपूर्ण अवसर है, जब लाखों भक्त यहां एकत्र होते हैं ।
पुरी रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है। भुवनेश्वर का बीजू पटनायक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है, जहां से पुरी सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है।
Official Website: Jagannath Dham
लोककथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु स्नान करने के लिए रामेश्वरम जाते हैं, बद्रीनाथ में ध्यान करते हैं, पुरी में भोजन करते हैं और द्वारका में विश्राम करते हैं। यदि आप चारो धाम की यात्रा एक बार में करना चाहते है तो चार धाम यात्रा को एक बार में पूरा करने के लिए एक निश्चित यात्रा रूट का पालन करना होता है। यात्रा आमतौर पर उत्तर से दक्षिण और पश्चिम से पूर्व की दिशा में की जाती है।
सबसे पहले बद्रीनाथ (उत्तराखंड) से यात्रा शुरू की जाती है, फिर पश्चिम में द्वारका (गुजरात) की ओर बढ़ते हैं। इसके बाद दक्षिण की ओर रामेश्वरम (तमिलनाडु) के लिए जाते हैं और अंत में पूर्व में पुरी (ओडिशा) पर यात्रा का समापन होता है। यह रूट धार्मिक और भौगोलिक दृष्टिकोण से सबसे उपयुक्त माना जाता है।
मुख्य चारधाम के अलावा एक छोटा चारधाम भी है जिसमे बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री आती हैं इस यात्रा की शुरुआत आमतौर पर यमुनोत्री से होती है और इसके बाद गंगोत्री, फिर केदारनाथ और अंत में बद्रीनाथ का दर्शन किया जाता है।
यमुनोत्री यात्रा की शुरुआत का पहला पड़ाव है, जो माता यमुना को समर्पित है। यहाँ एक पवित्र गर्म जल कुंड है, जहाँ भक्त पवित्र स्नान करते हैं। यमुनोत्री की यात्रा कठिन मानी जाती है, क्योंकि यहाँ तक पहुँचने के लिए ट्रेकिंग करनी पड़ती है।
गंगोत्री धाम गंगा नदी के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ माँ गंगा का मंदिर है, जो समुद्र तल से लगभग 3,100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। गंगा नदी का पवित्र जल यहाँ के मुख्य आकर्षणों में से एक है।
केदारनाथ धाम भगवान शिव को समर्पित है और यह पंच केदारों में सबसे प्रमुख है। यह मंदिर 3,583 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और चार धाम यात्रा का तीसरा पड़ाव है। यहाँ पहुँचने के लिए गौरीकुंड से एक कठिन ट्रेक करना पड़ता है।
बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु को समर्पित है और चार धाम यात्रा का अंतिम पड़ाव है। अलकनंदा नदी के किनारे स्थित यह मंदिर समुद्र तल से 3,300 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। मंदिर का वास्तुशिल्प और यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता हर भक्त को अद्भुत अनुभव कराती है।
छोटा चार धाम यात्रा के लिए सबसे अच्छा मार्ग है ऋषिकेश या देहरादून से शुरू करना। यहाँ से पहले यमुनोत्री, फिर गंगोत्री, केदारनाथ, और अंत में बद्रीनाथ की यात्रा पूरी की जा सकती है। अप्रैल से जून और सितंबर से अक्टूबर के बीच का समय यात्रा के लिए सबसे अनुकूल माना जाता है।
यह यात्रा हर भक्त को धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा अनुभव देती है।
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