श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Shri Mallikarjuna Jyotirlinga): 12 ज्योतिर्लिंगों में दूसरा

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Shri Mallikarjuna Jyotirlinga): 12 ज्योतिर्लिंगों में दूसरा
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श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: धार्मिक और पौराणिक महत्व (Shri Mallikarjuna Jyotirlinga: Religious and Mythological Significance)

श्रीशैलश्रृंगे विबुधातिसंगेतुलाद्रितुंगेsपि मुदा वसन्तम । तमर्जुनं मल्लिकापूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम ।।

अर्थात् जो ऊँचाई के आदर्शभूत पर्वतों से भी बढ़कर ऊँचे श्री शैल के शिखर पर, जहाँ देवताओं का अत्यन्त समागम रहता है, प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा जो संसार सागर से पार कराने के लिए पुल के समान है, उन प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूँ।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga) भारत के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से द्वितीय ज्योतिर्लिंग है, जो आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में स्थित है। इसे “दक्षिण का कैलाश” भी कहा जाता है। यह स्थान भगवान शिव और देवी पार्वती के मिलन का प्रतीक है, जहां वे अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने के लिए आए थे। मल्लिकार्जुन का नाम देवी पार्वती के नाम “मल्लिका” और भगवान शिव के नाम “अर्जुन” के मिलन से उत्पन्न हुआ है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का उल्लेख शिव पुराण की कोटिरुद्रसंहिता में विस्तार से किया गया है, जो इसकी प्राचीनता और धार्मिक महत्व को प्रमाणित करता है।

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति कथा (Shree Mallikarjuna Jyotirlinga Utpatti katha) :

शिव पुराण के अनुसार, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति के पीछे एक अद्भुत कथा है। जब भगवान शिव और देवी पार्वती ने अपने पुत्रों, गणेश और कार्तिकेय, के विवाह के लिए सही समय का निर्धारण करना चाहा, तो उन्होंने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। जिससे यह तय हुआ कि जो भी पुत्र पहले पृथ्वी का चक्कर लगाएगा, उसका विवाह पहले होगा।

कार्तिकेय ने अपने मयूर पर सवार होकर पूरी पृथ्वी का भ्रमण शुरू किया, जबकि गणेश ने अपनी बुद्धिमानी से अपने माता-पिता, शिव और पार्वती, की परिक्रमा की। गणेश ने कहा कि माता-पिता ही उनके लिए संपूर्ण ब्रह्मांड हैं। इस पर भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने श्री गणेश का विवाह पहले कर दिया गया।

जब कार्तिकेय लौटे और यह सुना, तो वे दुखी हो गए और क्रोधित होकर क्रौंच पर्वत (जो बाद में श्रीशैलम के नाम से जाना गया) चले गए। उनकी अनुपस्थिति से माता पार्वती अत्यंत दुखी थीं। भगवान शिव ने कार्तिकेय को बुलाने के लिए देवताओं और ऋषियों को भेजा, लेकिन कार्तिकेय ने उनकी बात नहीं मानी। अंततः, भगवान शिव और देवी पार्वती ने मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में श्रीशैलम में निवास करने का निर्णय लिया।

यहाँ, भगवान शिव ने अमावस्या को अपने पुत्र को देखने का निर्णय लिया, जबकि देवी पार्वती पूर्णिमा को आती थीं। इस प्रेम के कारण, यह स्थान तीनों लोकों में प्रसिद्ध हो गया। जो भी भक्त मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते है, उन्हें] सभी पापों से मुक्ति मिलती है और उनकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग महत्व (Importance of Shree Mallikarjuna Jyotirlinga) :

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पूजा से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता हैं, और सभी मनोरथों को प्राप्त करता है । श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक विकास के लिए भी अत्यंत फलदायी माने जाते है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का विशेष स्थान और इसका धार्मिक महत्व इस बात को प्रमाणित करता है कि यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान है जहाँ भक्त अपने मन के भीतर की शांति और संतोष की खोज में आते हैं। यहाँ आकर भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करते हैं, जिससे उनकी आस्था और विश्वास और भी मजबूत होता है।

मल्लिकार्जुन मंदिर की स्थापत्य कला ( Mallikarjuna Mandir Ki Sthapatya Kala) :

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का मंदिर भारतीय वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण है। यह मंदिर चोल शैली में बनाया गया है और इसकी संरचना अत्यंत सुंदर है। मंदिर के प्रवेश द्वार से लेकर गर्भगृह तक की वास्तुकला भक्तों को आकर्षित करती है। मंदिर की नक्काशी और कलाकृतियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि भारतीय स्थापत्य कला में श्री मल्लिकार्जुन मंदिर का एक विशेष स्थान है।

मंदिर परिसर में विभिन्न मंदिर भी हैं, जहाँ अन्य देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। इस परिसर का वातावरण भक्तों को एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, पहाड़ियों और हरियाली ने इस स्थान को और भी मनमोहक बना दिया है।

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व (Shree Mallikarjuna Jyotirlinga Ka Dharmik Aur Sanskratik Mahatav) :

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की यात्रा प्रत्येक शिव भक्त के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा मानी जाती है। श्रीशैलम न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सांस्कृतिक धरोहर का भी एक प्रमुख केंद्र है। श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में महाशिवरात्रि का त्यौहार विशेष धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु देश के विभिन्न हिस्सों से भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।

महाशिवरात्रि के दिन मल्लिकार्जुन मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और भव्य आरती का आयोजन किया जाता है। भक्त इस दिन विशेष रूप से यहां आने का प्रयास करते हैं, ताकि वे भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकें। इस दिन की विशेषता होती है कि भक्त रात भर जागरण करते हैं और भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते हैं। इस प्रकार, मल्लिकार्जुन की यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग यात्रा का उचित समय (Shree Mallikarjuna Jyotirlinga Yatra Ka Uchit Samay) :

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च के बीच का माना जाता है। इस दौरान मौसम सुहावना होता है और श्रद्धालु बिना किसी असुविधा के मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। यहाँ आने वाले तीर्थयात्री मंदिर के अलावा आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद लेते हैं।

यहां की प्राकृतिक लहरों की आवाज और मंदिर की घंटियों की गूंज एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। भक्त इस अद्भुत स्थान पर आकर अपने मन के भीतर की शांति और संतोष की खोज करते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion) :

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का धार्मिक और पौराणिक महत्व शिव पुराण में विस्तार से वर्णित है। यह ज्योतिर्लिंग शिव और शक्ति की संयुक्त उपासना का स्थल है, जो हर शिव भक्त के लिए अत्यंत पूजनीय है। मल्लिकार्जुन मंदिर का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व इसे एक प्रमुख धार्मिक स्थल बनाता है, जहाँ जाकर भक्त अपने जीवन के कष्टों से मुक्ति पाते हैं और आत्मिक शांति का अनुभव करते हैं।

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिए आप उनकी official website visit कर सकते हैं l 

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