श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग (Shri Rameshwaram Jyotirlinga)  : 12 ज्योतिर्लिंगों में ग्यारहवां 

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग (Shri Rameshwaram Jyotirlinga)  : 12 ज्योतिर्लिंगों में ग्यारहवां 

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः ।

श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥

अर्थात् जो भगवान श्री रामचन्द्र जी के द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम में अनेक बाणों द्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये गए, उन श्री रामेश्वर को मैं नियम से प्रणाम करता हूँ ॥

भारत के बारह प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक, श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का विशेष स्थान है। यह स्थान न केवल भगवान शिव की महिमा का प्रतीक है बल्कि भगवान श्रीराम के जीवन और उनकी लंका यात्रा से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी भी है। रामेश्वरम का उल्लेख शिव पुराण, स्कन्द पुराण और कई अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, जिससे इसकी महिमा और पवित्रता और बढ़ जाती है। यह मंदिर तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है और इसे दक्षिण का काशी भी कहा जाता है।

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का इतिहास और पौराणिक कथा (Shri Rameshwaram Jyotirlinga ki Utpatti Katha)

शिव पुराण के अनुसार, जब श्री राम ने सीता हरण के बाद लंका पर चढ़ाई आरंभ करी तब सेतु बनाने से पूर्व श्री राम को प्यास लगी और वानर ने उन्हें मीठा जल लाकर दिया l जल पीने से पूर्व ही राम को याद आया की उन्होंने अपने आराध्य शिव की आराधना तो की ही नही, तब उन्होंने शिव जी की ज्योतिर्लिंग रूप में  स्थापना की और उनसे विजय की कामना की l तभी से भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में विद्यमान हैं l इसे ही आज हम श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग और रामसेतु (Shri Rameshwaram Jyotirlinga Aur Ramsetu)

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार, जब श्रीराम समुद्र पार करके लंका की ओर जा रहे थे, तब उन्हें मार्ग में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने भगवान शिव का ध्यान किया और प्रार्थना की कि वह उनका मार्गदर्शन करें। भगवान शिव ने श्रीराम को समुद्र के पार पुल बनाने की सलाह दी। इसके बाद, श्रीराम और उनके वानर सेना ने पत्थरों से समुद्र पर एक सेतु का निर्माण किया, जिसे आज हम “रामसेतु” के नाम से जानते हैं।

यह भी माना जाता है कि यहां पर पूजन करने से भक्तों के पापों का क्षय होता है और उनकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। इस स्थान पर श्रद्धालु गंगाजल और कावेरी नदी के जल से स्नान करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस जल में स्नान करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर की वास्तुकला (Shri Rameshwaram Jyotirlinga Mandir ki Vastukala)

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग मंदिर की स्थापत्य कला अद्भुत और भव्य है। मंदिर का मुख्य आकर्षण इसकी लंबी और सुंदर गलियारों (कॉरिडोर) में से एक है, जो कि भारत के किसी भी मंदिर में सबसे लंबी मानी जाती है। इन गलियारों की कुल लंबाई लगभग 1200 मीटर है और इसमें सजीव चित्रकारी और पत्थरों की नक्काशी देखने को मिलती है। इसके अलावा, मंदिर में 22 तीर्थ कुण्ड भी हैं, जिन्हें ‘तेरथम’ कहते हैं। प्रत्येक कुण्ड का अपना धार्मिक महत्व है, और श्रद्धालु इन कुण्डों के जल से स्नान करके पवित्र होते हैं।

मंदिर में एक और विशिष्ट बात यह है कि यहां शिवलिंग का अभिषेक गंगाजल से किया जाता है, जिसे हरिद्वार से लाकर यहां चढ़ाया जाता है। इस प्रथा के पीछे मान्यता है कि गंगा और कावेरी के जल का अभिषेक करने से भगवान शिव अधिक प्रसन्न होते हैं।

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व (Shri Rameshwaram Jyotirlinga Ka Dharmik Mahatav)

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का तीर्थयात्रियों के जीवन में विशेष महत्त्व है। यह स्थान चार धामों में से एक है और यहां आने वाले श्रद्धालु मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा लेकर आते हैं। रामेश्वरम की यात्रा का मुख्य उद्देश्य अपने पापों का प्रायश्चित करना और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना है। इसके साथ ही, यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान श्रीराम की भक्ति को और उनकी लंका विजय की कथा को भी श्रद्धा के साथ स्मरण करते हैं।

शिव पुराण के अनुसार, यहां पूजा करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए, रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का दर्शन केवल भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए ही नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और पाप मुक्ति के लिए भी किया जाता है।

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की यात्रा कैसे करें ( Shri Rameshwaram Jyotirlinga Ki Yatra Kaise Kare)

रामेश्वरम मंदिर की यात्रा करने के लिए श्रद्धालुओं को पहले तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले के रामेश्वरम द्वीप तक पहुंचना होता है। भारत के प्रमुख शहरों से रामेश्वरम तक रेल और सड़क मार्ग की सुविधाएं उपलब्ध हैं। निकटतम हवाई अड्डा मदुरै में स्थित है, जो कि यहां से लगभग 170 किलोमीटर दूर है। मदुरै से बस या टैक्सी के माध्यम से रामेश्वरम आसानी से पहुंचा जा सकता है। 

मंदिर के दर्शन के बाद श्रद्धालु यहां के प्रसिद्ध समुद्री पुल रामसेतु की यात्रा भी कर सकते हैं, जिसे श्रीराम और उनकी वानर सेना ने लंका तक पहुंचने के लिए बनाया था। यहां के समुद्र तट पर विशेष धार्मिक स्नान की व्यवस्था भी है, जिसे करने से व्यक्ति के सभी पाप दूर हो जाते हैं।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की यात्रा का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से अप्रैल के बीच होता है। इस अवधि में मौसम सुहावना और ठंडा रहता है, जो तीर्थ यात्रा और घूमने के लिए आदर्श है।

निष्कर्ष (Conclusion)

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की महिमा अद्वितीय है। यह न केवल भगवान शिव का पवित्र स्थान है, बल्कि भगवान श्रीराम की लंका यात्रा और रावण वध के पश्चात की आध्यात्मिक यात्रा का भी प्रतीक है। यहां आकर श्रद्धालु भगवान शिव के आशीर्वाद से अपने जीवन के समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त करते हैं और मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं। रामेश्वरम की यात्रा हर उस भक्त के लिए आवश्यक है, जो अपने जीवन में भगवान शिव और श्रीराम की भक्ति से आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करना चाहता है। 

शिव पुराण में इस स्थान का उल्लेख केवल एक तीर्थ स्थल के रूप में ही नहीं, बल्कि मानव के जीवन की आत्मिक शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक स्थल के रूप में किया गया है।

श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग से जुड़ी अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिए आप उनकी official website visit कर सकते हैं l 

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