शीतला सप्तमी 2025: रोगों से मुक्ति और शुद्धता का पर्व | Sheetala Saptami 2025

शीतला सप्तमी 2025: रोगों से मुक्ति और शुद्धता का पर्व | Sheetala Saptami 2025

शीतला सप्तमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत और पूजा का दिन है, जिसे मुख्य रूप से स्वास्थ्य, शुद्धता और रोगों से बचाव के लिए मनाया जाता है। यह व्रत शीतला माता को समर्पित है, जो संक्रामक रोगों, विशेष रूप से चेचक (smallpox) और अन्य त्वचा रोगों से बचाने वाली देवी मानी जाती हैं।

यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इसे शीतला अष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है, लेकिन कुछ स्थानों पर सप्तमी तिथि को ही इसका व्रत रखा जाता है।

शीतला सप्तमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त (Sheetala Saptami 2025 Ki Tithi Aur Shubh Muhurat)

शीतला सप्तमी कब है 2025 में?

शीतला सप्तमी का व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है।

  • शीतला सप्तमी 2025 तिथि: 21 मार्च 2025 (शुक्रवार )
  • पूजन का शुभ मुहूर्त: प्रातः 06:15 बजे से 10:30 बजे तक (स्थान के अनुसार समय भिन्न हो सकता है, अतः स्थानीय पंचांग देखें।)

Note: राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों में इसे शीतला अष्टमी (22  मार्च 2025) के रूप में भी मनाया जाता है।

शीतला सप्तमी की पौराणिक कथा (Sheetala Saptami Ki Pauranik Katha)

शीतला माता और ज्वरासुर की कथा

पुराणों के अनुसार, शीतला माता को ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था कि वे सभी जीवों को संक्रामक रोगों से बचाने वाली देवी बनेंगी।

एक समय ज्वरासुर नामक राक्षस ने लोगों को विभिन्न संक्रामक रोगों से पीड़ित कर दिया। उसने मानव जाति को भयंकर बुखार और चेचक जैसी बीमारियों से त्रस्त कर दिया।

तब शीतला माता ने नीम के पत्तों, ठंडे जल और जड़ी-बूटियों की सहायता से लोगों को इन रोगों से मुक्ति दिलाई। माता ने यह भी कहा कि जो भी व्यक्ति इस विशेष दिन पर ठंडे भोजन (बासी भोजन) का भोग लगाएगा और अपनी रसोई में अग्नि प्रज्वलित नहीं करेगा, उसे संक्रामक रोगों से मुक्ति मिलेगी।

इसी कारण, इस दिन बासी भोजन खाने और गर्म खाना न पकाने की परंपरा चली आ रही है।

शीतला सप्तमी पूजा विधि (Sheetala Saptami Pooja Vidhi)

शीतला माता की पूजा सामग्री:

  • शीतला माता की प्रतिमा या चित्र
  • गंगाजल, अक्षत, रोली, हल्दी, मौली (कलावा)
  • नीम की पत्तियां, दही, चावल, गुड़, हलवा, ठंडा भोजन (बासी रोटी या चूरमा)
  • दीपक, धूप, फूल, नारियल, पंचामृत

पूजा विधि:

  1. स्नान और संकल्प: प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और शीतला माता की पूजा का संकल्प लें।
  2. शीतला माता की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें।
  3. गंगा जल या पवित्र जल से माता को स्नान कराएं।
  4. नीम के पत्ते, अक्षत, हल्दी, चावल और फूल अर्पित करें।
  5. शीतला माता को ठंडे भोजन (बासी रोटी, दही, चूरमा) का भोग लगाएं।
  6. शीतला माता की आरती करें और अपनी तथा अपने परिवार की आरोग्यता की प्रार्थना करें।
  7. दिनभर ताजा भोजन न पकाएं और केवल एक दिन पहले बना भोजन ग्रहण करें।

शीतला सप्तमी का महत्व (Sheetala Saptami Ka Mahatav)

1. संक्रामक रोगों से बचाव

शीतला माता की पूजा त्वचा रोग, चेचक, चिकनपॉक्स और अन्य संक्रामक बीमारियों से रक्षा के लिए की जाती है।

2. पर्यावरण और स्वास्थ्य संरक्षण

यह पर्व हमें स्वच्छता और शुद्धता का संदेश देता है। नीम के पत्तों का प्रयोग और ठंडे भोजन का सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी माना जाता है।

3. ताजा भोजन न पकाने का वैज्ञानिक कारण

इस दिन भोजन न पकाने की परंपरा का वैज्ञानिक आधार भी है। ग्रीष्म ऋतु के आगमन से पहले शरीर को हल्का और सुपाच्य भोजन देने के लिए यह परंपरा बनी है।

4. मातृशक्ति का सम्मान

यह पर्व नारी शक्ति और मातृभाव का प्रतीक है। शीतला माता की पूजा करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

शीतला सप्तमी की परंपराएं और क्षेत्रीय महत्व (Sheetala Saptami Ki Paramparayen Aur Kshetriya Mahatav)

राजस्थान में शीतला सप्तमी

राजस्थान में इसे बासोड़ा पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घरों में एक दिन पहले का बना हुआ भोजन (बासी भोजन) खाया जाता है और माता को भोग लगाया जाता है।

गुजरात और उत्तर प्रदेश में पूजा

गुजरात और उत्तर प्रदेश में महिलाएं शीतला माता के मंदिर में जाकर विशेष पूजा करती हैं और नीम के पत्तों से जल छिड़कती हैं।

पश्चिम बंगाल और बिहार में उत्सव

बंगाल में इसे शीतलाष्टमी के रूप में मनाया जाता है, जहां विशेष रूप से ठंडे पेय पदार्थ और दही का सेवन किया जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शीतला सप्तमी का महत्व (Vaigyanik Drishtikon Se Sheetala Saptami 2025)

  1. नीम के पत्तों का प्रयोग – यह प्राकृतिक एंटीबायोटिक है, जो शरीर को संक्रमण से बचाने में सहायक होता है।
  2. ठंडा भोजन खाने की परंपरा – इससे शरीर को ठंडक मिलती है और गर्मी के कारण होने वाली बीमारियों से बचाव होता है।
  3. स्वच्छता का संदेश – यह पर्व साफ-सफाई और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य करता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

शीतला सप्तमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, स्वच्छता और प्रकृति के प्रति जागरूकता का प्रतीक भी है। यह पर्व हमें संक्रामक रोगों से बचने और शीतला माता की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।

“शीतला माता का आशीर्वाद सब पर बना रहे,
हर परिवार निरोगी और सुख-समृद्धि से भरा रहे!”

आप सभी को शीतला सप्तमी 2025 की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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