शीतला सप्तमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत और पूजा का दिन है, जिसे मुख्य रूप से स्वास्थ्य, शुद्धता और रोगों से बचाव के लिए मनाया जाता है। यह व्रत शीतला माता को समर्पित है, जो संक्रामक रोगों, विशेष रूप से चेचक (smallpox) और अन्य त्वचा रोगों से बचाने वाली देवी मानी जाती हैं।
यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इसे शीतला अष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है, लेकिन कुछ स्थानों पर सप्तमी तिथि को ही इसका व्रत रखा जाता है।
शीतला सप्तमी का व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है।
Note: राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों में इसे शीतला अष्टमी (22 मार्च 2025) के रूप में भी मनाया जाता है।
पुराणों के अनुसार, शीतला माता को ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था कि वे सभी जीवों को संक्रामक रोगों से बचाने वाली देवी बनेंगी।
एक समय ज्वरासुर नामक राक्षस ने लोगों को विभिन्न संक्रामक रोगों से पीड़ित कर दिया। उसने मानव जाति को भयंकर बुखार और चेचक जैसी बीमारियों से त्रस्त कर दिया।
तब शीतला माता ने नीम के पत्तों, ठंडे जल और जड़ी-बूटियों की सहायता से लोगों को इन रोगों से मुक्ति दिलाई। माता ने यह भी कहा कि जो भी व्यक्ति इस विशेष दिन पर ठंडे भोजन (बासी भोजन) का भोग लगाएगा और अपनी रसोई में अग्नि प्रज्वलित नहीं करेगा, उसे संक्रामक रोगों से मुक्ति मिलेगी।
इसी कारण, इस दिन बासी भोजन खाने और गर्म खाना न पकाने की परंपरा चली आ रही है।
शीतला माता की पूजा त्वचा रोग, चेचक, चिकनपॉक्स और अन्य संक्रामक बीमारियों से रक्षा के लिए की जाती है।
यह पर्व हमें स्वच्छता और शुद्धता का संदेश देता है। नीम के पत्तों का प्रयोग और ठंडे भोजन का सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी माना जाता है।
इस दिन भोजन न पकाने की परंपरा का वैज्ञानिक आधार भी है। ग्रीष्म ऋतु के आगमन से पहले शरीर को हल्का और सुपाच्य भोजन देने के लिए यह परंपरा बनी है।
यह पर्व नारी शक्ति और मातृभाव का प्रतीक है। शीतला माता की पूजा करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
राजस्थान में इसे बासोड़ा पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घरों में एक दिन पहले का बना हुआ भोजन (बासी भोजन) खाया जाता है और माता को भोग लगाया जाता है।
गुजरात और उत्तर प्रदेश में महिलाएं शीतला माता के मंदिर में जाकर विशेष पूजा करती हैं और नीम के पत्तों से जल छिड़कती हैं।
बंगाल में इसे शीतलाष्टमी के रूप में मनाया जाता है, जहां विशेष रूप से ठंडे पेय पदार्थ और दही का सेवन किया जाता है।
शीतला सप्तमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, स्वच्छता और प्रकृति के प्रति जागरूकता का प्रतीक भी है। यह पर्व हमें संक्रामक रोगों से बचने और शीतला माता की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।
“शीतला माता का आशीर्वाद सब पर बना रहे,
हर परिवार निरोगी और सुख-समृद्धि से भरा रहे!”
आप सभी को शीतला सप्तमी 2025 की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Read More : Related Article