श्रीमद्भागवत महापुराण की 5 रोचक कथाएँ | Shrimad Bhagwat Mahapuran ki 5 Rochak Kathaye

श्रीमद्भागवत महापुराण की 5 रोचक कथाएँ | Shrimad Bhagwat Mahapuran ki 5 Rochak Kathaye

श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान विष्णु के अनेक लीलाएँ वर्णित हैं। इनमें दैत्यों के जन्म, उनके वध, भक्तों की भक्ति और मोक्ष की अद्भुत कथाएँ शामिल हैं।

1. चित्रकेतु की कथा | Chitraketu Ki Katha

(संदर्भ: श्रीमद्भागवत महापुराण, स्कंध 6, अध्याय 14-17)

कथा का विस्तार:

प्राचीन काल में शूरसेन नामक देश में राजा चित्रकेतु राज्य करते थे | उनकी १ करोड़ पत्नियां थी किन्तु फिर भी उनकी एक भी संतान नहीं थी।  एक दिन जब ऋषि अंगिरा उनके राज्य में आये तब राजा चित्रकेतु ने उनका विधिपूर्वक आतिथ्य सत्कार किया | और अंगिरा के पूछने पर अपनी चिंता का कारण पुत्र न होना बताया तब ब्रह्मपुत्र अंगिरा ऋषि ने उनके लिए यज्ञ किया और उसका अवशेष प्रसाद चित्रकेतु की रानियों में सबसे बड़ी और गुणवती रानी कृतद्युति को प्रदान किया |  जिससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई किन्तु दूसरी रानियों ने द्वेष के चलते राजा के पुत्र को विष दे दिया जिससे उसकी मृत्यु  हो गई | 

पुत्र की मृत्यु पर जब राजा दुखी होकर शोक कर रहे थे तब नारद मुनि और अंगिरा ऋषि द्वारा उन्हें ज्ञान दिया गया जिससे प्रभावित हो चित्रकेतु ने राज्य छोड़ दिया और भगवान श्री हरि की भक्ति में लग गए | चित्रकेतु ने कुछ ही समय में अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली और भगवान नारायण के दर्शन प्राप्त कर लिए | 

भगवान शंकर का अपमान और माता पार्वती का शाप:

  • एक बार चित्रकेतु भगवान् के दिए हुए विमान से कही जा रहे थे तभी उन्होंने देखा की भगवान शिव बड़े बड़े मुनियो की सभा में माता पार्वती के साथ आलिंगन कर के बैठे हैं | यह देख चित्रकेतु माता के पास गए और भगवन शिव पर  व्यंग्य करने लगे | 
  • इस बात से क्रोधित होकर माता पार्वती ने उन्हें असुर होने का शाप दे दिया, जिससे वे अगले जन्म में दैत्यराज वृत्रासुर बने।

शिक्षा:

  • भगवान की भक्ति से मोक्ष संभव है।
  • भक्त को कभी अहंकार नहीं करना चाहिए।

2 . वृत्रासुर वध | Vritrasur Vadh

 (संदर्भ: श्रीमद्भागवत महापुराण, स्कंध 6, अध्याय 9-12)

कथा का विस्तार:

पूर्व जन्म में मिले श्राप के कारण  चित्रकेतु ने  वृत्रासुर नामक दैत्य बन कर जन्म लिया | वृत्रासुर के जन्म का उद्देश्य केवल अपने भाई विश्वरूप की हत्या का प्रतिशोध इंद्र से लेना था | वृत्रासुर ने अपने बल और सामर्थ्य से सभी देवताओं को परास्त कर दिया | वृत्रासुर को पराजित करने के उद्देश्य से इंद्रा सहित सभी देवताओ ने भगवान विष्णु की शरण ली | भगवान ने देवताओ को सुझाव दिया कि  आप जाकर ऋषि दधीचि से उनका शरीर मांग लो जो उपासना, व्रत और तपस्या के कारण  अत्यंत मजबूत हो गया हैं | देवताओ ने ऋषि दधीचि से उनका शरीर मांगकर भगवान  विश्वकर्मा  द्व्रारा उसका एक अस्त्र तैयार करवा लिया | 

युद्ध और वृत्रासुर का मोक्ष:

वृत्रासुर ने इंद्र से कहा—
“मैं जानता हूँ कि मेरा अंत निश्चित है, परंतु मैं भगवान विष्णु का अनन्य भक्त हूँ।”

जब इंद्र ने वज्र से उसका वध किया, तब वृत्रासुर ने भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए मोक्ष प्राप्त किया।

शिक्षा:

  • भगवान विष्णु के भक्त को मृत्यु का भय नहीं होता।
  • सच्ची भक्ति से मोक्ष संभव है, चाहे वह दैत्य ही क्यों न हो।

3. जय-विजय की कथा | Jai Vijay Ki Katha

 (संदर्भ: श्रीमद्भागवत महापुराण, स्कंध 7, अध्याय 1-3)

कथा का विस्तार:

जय और विजय भगवान विष्णु के पार्षद थे, जो वैकुंठ के द्वार पर रहते थे।

  • एक बार सनत कुमार आदि ऋषि भगवान विष्णु के दर्शन करने आए।
  • जय-विजय ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया।
  • क्रोधित होकर ऋषियों ने उन्हें श्राप दिया कि वे दैत्य योनि में जन्म लेंगे।

भगवान विष्णु का वरदान:

भगवान विष्णु ने कहा—
“तुम तीन जन्मों तक मेरे शत्रु रूप में जन्म लोगे, फिर मेरे धाम वापस आओगे।”

तीन जन्म:

  1. हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु (सत्ययुग में)
  2. रावण और कुंभकर्ण (त्रेतायुग में)
  3. शिशुपाल और दंतवक्र (द्वापरयुग में)

शिक्षा:

  • भगवान के पार्षद भी कर्मफल से मुक्त नहीं होते।
  • शाप भी भगवान की इच्छा से होते हैं।

4. भगवान के मत्स्य अवतार की कथा | Bhagwan ke Matsya Avatar Ki Katha

प्रलय के समय जब चारों ओर जल ही जल था, तब असुर हयग्रीव ने ब्रह्मा जी से वेदों को चुरा लिया और समुद्र में छिप गया। इसी समय सत्यव्रत नाम के एक राजा, जो आगे चलकर वैवस्वत मनु बने, एक दिन नदी में स्नान कर रहे थे। तभी उनके हाथों में एक छोटी सी मछली आ गई, जिसने उनसे अपनी रक्षा करने की प्रार्थना की।

राजा ने मछली को एक छोटे पात्र में रखा, लेकिन वह मछली तेजी से बढ़ने लगी। जब उसे नदी में डाला गया, तब भी वह और विशाल हो गई। अंत में जब उसे समुद्र में छोड़ा गया, तो वह विराट रूप धारण कर बोली—

“मैं ही भगवान विष्णु हूँ, और शीघ्र ही प्रलय आने वाला है। तुम एक विशाल नौका तैयार करो, जिसमें सप्तऋषियों और प्राणियों को स्थान दो। जब प्रलय आए, तो मैं स्वयं उसकी रक्षा करूंगा।”

प्रलय आने पर भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में प्रकट होकर नाव को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया और हयग्रीव का वध कर वेदों को पुनः ब्रह्मा जी को लौटा दिया। इस प्रकार भगवान ने इस संसार की रक्षा की।

शिक्षा :

  • अत्यधिक अहंकार व्यक्ति का नाश कर देता है।
  • भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं।

5. कच्छप अवतार की कथा  | Kachhap Avatar Ki Katha

एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप से इंद्र और अन्य देवता शक्ति विहीन हो गए, तब असुरों ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। जब देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली, तो उन्होंने समुद्र मंथन का उपाय बताया।

समुद्र मंथन के लिए मंदार पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया, लेकिन जैसे ही देवता और असुर इसे मंथने लगे, पर्वत समुद्र में डूबने लगा। तब भगवान विष्णु ने विशाल कछुए (कच्छप) का रूप धारण किया और अपनी पीठ पर मंदार पर्वत को धारण कर लिया।

मंथन से पहले कालकूट विष निकला, जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया। इसके बाद ऐरावत हाथी, उच्चैःश्रवा घोड़ा, कौस्तुभ मणि, पारिजात वृक्ष, अप्सराएँ, लक्ष्मी जी और अंत में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए।

देवताओं और असुरों के बीच अमृत पाने के लिए युद्ध छिड़ गया, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और अपनी माया से असुरों को अमृत से वंचित कर दिया। इस प्रकार भगवान ने देवताओं की रक्षा की और धर्म की पुनः स्थापना की | 

शिक्षा :

  • भगवान अपने भक्तों की रक्षा अवश्य करते हैं।

निष्कर्ष | Conclusion

 श्रीमद्भागवत महापुराण की  ये कथाएँ हमें भक्ति, अहंकार के विनाश, और भगवान विष्णु की लीला का परिचय कराती हैं।

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