भारत की प्राचीनतम सभ्यता और सनातन धर्म की आत्मा हैं — वेद। ये चार वेद न केवल आध्यात्मिक ज्ञान का भंडार हैं, बल्कि वैज्ञानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अनमोल निधि हैं। आज हम जानेंगे — चार वेद कौन-कौन से हैं, उनका विषय क्या है, उनका महत्व क्या है, और वे मानव जीवन को कैसे दिशा देते हैं।
‘वेद’ शब्द संस्कृत भाषा के विद् धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है जानना, अतः वेद का शाब्दिक अर्थ है ‘ज्ञान’। इसी धातु से ‘विदित’ (जाना हुआ), ‘विद्या’ (ज्ञान), ‘विद्वान’ (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। इन्हें देववाणी के रूप में माना गया है। इसीलिए ये ‘ श्रुति’ कहलाते हैं। वेदों को परम सत्य माना गया है| उनमें लौकिक अलौकिक सभी विषयों का ज्ञान भरा पड़ा है। प्रत्येक वेद के चार अंग हैं। वे हैं वेदसंहिता, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक तथा उपनिषद्।
ऋग्वेद सबसे प्राचीन और पहला वेद माना जाता है। इसमें देवताओं की स्तुति के 1,028 मंत्र (सूक्त) हैं, जिन्हें ऋचाएं कहते हैं। यह 10 मंडलों में विभाजित है।
“अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्।”
(मैं अग्नि की स्तुति करता हूँ जो यज्ञ के पुरोहित हैं।)
ऋग्वेद केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि कविता, दर्शन और विज्ञान का समुच्चय है।
यजुर्वेद मुख्यतः कर्मकांड (यज्ञ विधियों) पर आधारित है। यह गद्य और पद्य दोनों रूपों में है।
यह वेद बताता है कि ज्ञान को कर्म में कैसे उतारा जाए। यह प्रारंभ से समापन तक यज्ञ की संपूर्ण प्रक्रिया का मार्गदर्शन करता है।
सामवेद को गानवेद भी कहते हैं। इसका उपयोग मुख्यतः यज्ञों में गान के लिए होता था।
भारतीय संगीत की उत्पत्ति सामवेद से ही मानी जाती है। ऋचाएं यहाँ राग-रागिनियों के माध्यम से गाई जाती हैं, जिससे मन और आत्मा दोनों शुद्ध होते हैं।
अथर्ववेद जीवन के व्यवहारिक पक्ष से जुड़ा है। इसमें तंत्र, मंत्र, औषधियाँ, चिकित्सा और सामाजिक विषयों का समावेश है।
यह वेद मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक जीवन को संतुलित करने के लिए अद्भुत ज्ञान प्रदान करता है।
हर वेद चार भागों में विभाजित होता है:
चारों वेद सनातन धर्म के स्तंभ हैं। ऋग्वेद ज्ञान का स्रोत है, यजुर्वेद कर्म का पथ है, सामवेद भक्ति और संगीत की लहर है, और अथर्ववेद जीवन की व्यवहारिक शक्ति है।
यदि हम वेदों को समझें और उनके अनुसार जीवन में उतारें, तो हमारा जीवन न केवल आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होगा, बल्कि सामाजिक रूप से भी सफल होगा।
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