प्राचीन काल में एक राज्य में एक दानी राजा और उनकी रानी रहते थे। राजा धर्म-कर्म में रुचि रखते थे और गरीबों व ब्राह्मणों को दान दिया करते थे। लेकिन रानी को यह कार्य पसंद नहीं था। रानी अक्सर धन के दान पर राजा को टोकती थी। राजा ने इसे रानी की सोच मानकर नजरअंदाज कर दिया और अपना धर्म-कर्म जारी रखा।
एक दिन बृहस्पतिदेव साधु वेश में राजा के महल में पहुंचे। उस समय राजा मौजूद नहीं थे। साधु ने रानी से दान मांगा, लेकिन रानी ने गुस्से में मना कर दिया। रानी ने धन नष्ट करने की इच्छा जताई। साधु ने उसे गुरुवार को अशुद्ध कर्म (धुलाई, बाल धोना, और दूसरों का अपमान करना) करने की विधि बताई। रानी ने साधु की बात मान ली और गुरुवार के दिन अशुद्ध कार्य करने लगी। इसके परिणामस्वरूप, धीरे-धीरे सारा धन नष्ट हो गया।
धन नष्ट होने के कारण राजा और रानी के जीवन में परेशानियाँ बढ़ने लगीं। राजा को परदेश जाना पड़ा, और रानी अपनी दासी के साथ अत्यंत कठिनाई में रहने लगी। दोनों को भोजन के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ा। भूख से त्रस्त होकर रानी ने अपनी बहन से मदद मांगी।
रानी की बहन ने उसे बृहस्पतिवार व्रत की महिमा बताई। उसने कहा, “बृहस्पतिदेव धन, सुख, और समृद्धि के देवता हैं। जो व्यक्ति सच्चे मन से उनका व्रत करता है, उसकी सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।” रानी ने अपनी दासी के साथ यह व्रत करना शुरू किया। धीरे-धीरे उनकी स्थिति में सुधार होने लगा।
उधर, परदेश में राजा को भी बृहस्पतिदेव ने साधु वेश में दर्शन दिए। उन्होंने राजा को व्रत करने का सुझाव दिया। राजा ने बृहस्पतिवार व्रत किया, और जल्द ही उसकी सभी परेशानियाँ समाप्त हो गईं। धन और संपत्ति लौट आई, और राजा-रानी दोनों का जीवन सुखमय हो गया।
रानी ने इस अनुभव के बाद अपने धन का उपयोग धर्म-कर्म और जरूरतमंदों की मदद के लिए करना शुरू कर दिया। नगर में उसका यश फैल गया। बृहस्पतिदेव की कृपा से राजा और रानी को संतान सुख भी प्राप्त हुआ।
बृहस्पतिवार व्रत केवल आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं करता, बल्कि यह जीवन में शांति, प्रेम, और संतोष भी लाता है। यह व्रत भगवान विष्णु और बृहस्पतिदेव को प्रसन्न करने का सरल और प्रभावी उपाय है।
Read More : Related Content