बृहस्पतिवार व्रत कथा और विधि | Brihaspativar Vrat Katha Aur Vidhi

बृहस्पतिवार व्रत कथा और विधि | Brihaspativar Vrat Katha Aur Vidhi

बृहस्पतिवार व्रत कथा (Guruvar/Brihaspativar Vrat Katha)

प्राचीन काल में एक राज्य में एक दानी राजा और उनकी रानी रहते थे। राजा धर्म-कर्म में रुचि रखते थे और गरीबों व ब्राह्मणों को दान दिया करते थे। लेकिन रानी को यह कार्य पसंद नहीं था। रानी अक्सर धन के दान पर राजा को टोकती थी। राजा ने इसे रानी की सोच मानकर नजरअंदाज कर दिया और अपना धर्म-कर्म जारी रखा।

साधु का आगमन और रानी का अहंकार

एक दिन बृहस्पतिदेव साधु वेश में राजा के महल में पहुंचे। उस समय राजा मौजूद नहीं थे। साधु ने रानी से दान मांगा, लेकिन रानी ने गुस्से में मना कर दिया। रानी ने धन नष्ट करने की इच्छा जताई। साधु ने उसे गुरुवार को अशुद्ध कर्म (धुलाई, बाल धोना, और दूसरों का अपमान करना) करने की विधि बताई। रानी ने साधु की बात मान ली और गुरुवार के दिन अशुद्ध कार्य करने लगी। इसके परिणामस्वरूप, धीरे-धीरे सारा धन नष्ट हो गया।

दुखों का आगमन

धन नष्ट होने के कारण राजा और रानी के जीवन में परेशानियाँ बढ़ने लगीं। राजा को परदेश जाना पड़ा, और रानी अपनी दासी के साथ अत्यंत कठिनाई में रहने लगी। दोनों को भोजन के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ा। भूख से त्रस्त होकर रानी ने अपनी बहन से मदद मांगी।

बृहस्पतिवार व्रत की महिमा (Brihaspativar Vrat ki Mahima)

रानी की बहन ने उसे बृहस्पतिवार व्रत की महिमा बताई। उसने कहा, “बृहस्पतिदेव धन, सुख, और समृद्धि के देवता हैं। जो व्यक्ति सच्चे मन से उनका व्रत करता है, उसकी सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।” रानी ने अपनी दासी के साथ यह व्रत करना शुरू किया। धीरे-धीरे उनकी स्थिति में सुधार होने लगा।

राजा को बृहस्पतिदेव का आशीर्वाद (Raja ko Brihaspati ka Aashirvaad)

उधर, परदेश में राजा को भी बृहस्पतिदेव ने साधु वेश में दर्शन दिए। उन्होंने राजा को व्रत करने का सुझाव दिया। राजा ने बृहस्पतिवार व्रत किया, और जल्द ही उसकी सभी परेशानियाँ समाप्त हो गईं। धन और संपत्ति लौट आई, और राजा-रानी दोनों का जीवन सुखमय हो गया।

सुखद अंत

रानी ने इस अनुभव के बाद अपने धन का उपयोग धर्म-कर्म और जरूरतमंदों की मदद के लिए करना शुरू कर दिया। नगर में उसका यश फैल गया। बृहस्पतिदेव की कृपा से राजा और रानी को संतान सुख भी प्राप्त हुआ।

बृहस्पतिवार व्रत विधि (Brihaspativar Vrat Vidhi)

  1. व्रत की तैयारी:
    • बृहस्पतिवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पीले वस्त्र धारण करें।
    • पूजा स्थल को साफ करके केले के वृक्ष या भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें।
  2. पूजा की सामग्री:
    • केले का वृक्ष (यदि संभव हो)।
    • पीले फूल, चने की दाल, मुनक्का।
    • घी का दीपक, चंदन, और हल्दी।
  3. पूजन विधि:
    • सबसे पहले केले के वृक्ष या विष्णु भगवान को जल चढ़ाएं।
    • भगवान विष्णु को पीले फूल, चने की दाल और मुनक्का अर्पित करें।
    • दीपक जलाकर “ॐ बृहस्पतये नमः” मंत्र का जाप करें।
    • बृहस्पतिवार व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
  4. भोजन और नियम:
    • व्रत के दौरान केवल पीले वस्त्र पहनें और पीला भोजन ग्रहण करें।
    • इस दिन नमक, तेल, और अन्य तामसिक भोजन से बचें।
    • जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करें।

बृहस्पतिवार व्रत के लाभ (Brihaspativar Vrat ka Laabh)

  • बृहस्पतिवार व्रत करने से जीवन की सभी परेशानियाँ समाप्त होती हैं।
  • दांपत्य जीवन में प्रेम और शांति बनी रहती है।
  • आर्थिक कष्ट दूर होते हैं और धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।
  • मानसिक शांति और आत्मिक बल प्राप्त होता है।

महत्वपूर्ण सुझाव

  • इस दिन केले के वृक्ष की पूजा करने से बृहस्पतिदेव विशेष प्रसन्न होते हैं।
  • नमक और तेल का प्रयोग वर्जित है, क्योंकि यह बृहस्पतिदेव को अप्रिय है।

निष्कर्ष (Conclusion)

बृहस्पतिवार व्रत केवल आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं करता, बल्कि यह जीवन में शांति, प्रेम, और संतोष भी लाता है। यह व्रत भगवान विष्णु और बृहस्पतिदेव को प्रसन्न करने का सरल और प्रभावी उपाय है।

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