हिंदू धर्म में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व है। इसे हरिशयनी एकादशी और पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे चतुर्मास की शुरुआत कहा जाता है। भक्तगण इस व्रत को करके भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करते हैं और जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि लाते हैं।
देवशयनी एकादशी 2025 की तिथि और समय (Devshayani Ekadashi 2025 Tithi Aur Samay)
- तिथि आरंभ: 8 जुलाई 2025, मंगलवार को रात 12:34 बजे।
- तिथि समाप्त: 9 जुलाई 2025, बुधवार को रात 02:15 बजे।
- पारण का समय: 10 जुलाई 2025 को सुबह 05:25 बजे से 08:05 बजे तक।
देवशयनी एकादशी का महत्व (Devshayani Ekadashi Ka Mahatav)
- चतुर्मास का प्रारंभ: इस दिन से भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और चतुर्मास शुरू होता है।
- भवसागर से मुक्ति: यह व्रत सभी पापों का नाश करता है और मोक्ष प्रदान करता है।
- धार्मिक कार्यों का निषेध: चतुर्मास में विवाह और अन्य शुभ कार्यों को रोक दिया जाता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह दिन आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक जागरूकता का प्रतीक है।
- संपूर्ण पुण्य प्राप्ति: देवशयनी एकादशी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा (Devshayani Ekadashi Vrat Katha)
प्राचीन काल में मांधाता नामक राजा सूर्यवंश में जन्मे थे। उनका राज्य अत्यंत समृद्ध और धर्मपरायण था, लेकिन एक बार उनके राज्य में तीन वर्षों तक बारिश नहीं हुई। अकाल पड़ने के कारण प्रजा दुखी हो गई।
राजा मांधाता ने अपनी समस्या का समाधान जानने के लिए ऋषि अंगिरा का आश्रय लिया। ऋषि ने कहा कि राज्य पर यह संकट पापों के कारण आया है और इसे दूर करने का उपाय देवशयनी एकादशी व्रत है।
राजा और उनकी प्रजा ने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ इस व्रत का पालन किया। इसके प्रभाव से राज्य में वर्षा हुई और प्रजा सुखी हो गई। तब से इस व्रत को पापों के नाश और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
देवशयनी एकादशी व्रत विधि (Devshayani Ekadashi Vrat Vidhi)
- स्नान और संकल्प: प्रातःकाल स्नान कर भगवान विष्णु की आराधना का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं, तुलसी, पुष्प, और प्रसाद अर्पित करें।
- मंत्र जप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करें।
- व्रत कथा का पाठ: देवशयनी एकादशी की कथा पढ़ें या सुनें।
- उपवास: इस दिन अन्न और जल का त्याग कर फलाहार करें।
- दान का महत्व: जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करें।
- पारण: अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।
देवशयनी एकादशी के लाभ (Devshayani Ekadashi ke Labh)
- मोक्ष प्राप्ति: भगवान विष्णु की कृपा से भक्त को मोक्ष प्राप्त होता है।
- पापों का नाश: यह व्रत व्यक्ति के सभी पापों को समाप्त करता है।
- आध्यात्मिक शुद्धि: व्रत से मन और आत्मा की शुद्धि होती है।
- सुख और समृद्धि: व्रत से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- पारिवारिक कल्याण: यह व्रत परिवार में कल्याण और शुभता लाता है।
देवशयनी एकादशी और चतुर्मास (Devshayani Ekadashi Aur Chaturmas)
- भगवान विष्णु का शयन: इस दिन से भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर योगनिद्रा में चले जाते हैं।
- चतुर्मास के नियम: चार महीनों तक भक्तों को सात्त्विक जीवन जीना चाहिए और मांस, मदिरा, और अन्य तामसिक चीजों से दूर रहना चाहिए।
- धार्मिक कार्यों की प्रधानता: इन चार महीनों में भगवान विष्णु की आराधना और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
देवशयनी एकादशी व्रत भगवान विष्णु की कृपा पाने और जीवन के सभी पापों से छुटकारा पाने का सर्वोत्तम उपाय है। यह व्रत न केवल भक्त को पुण्य का भागी बनाता है, बल्कि मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करता है। श्रद्धा और भक्ति के साथ इस व्रत को करने से जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि आती है।
जय श्री हरि!
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