Hanuman Ashtak | हनुमानाष्टक : महिमा, पाठ विधि, महत्व और लाभ

Hanuman Ashtak

हनुमान जी को बल, बुद्धि, भक्ति, और संकटमोचन के रूप में पूजा जाता है। वे भगवान श्री राम के अनन्य भक्त हैं और उनकी कृपा से भक्तों के सभी संकट दूर हो जाते हैं। हनुमान अष्टक का पाठ करने से व्यक्ति को अद्भुत शक्ति, साहस, और जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह अष्टक संकटमोचन हनुमान जी की स्तुति है, जिसे पढ़ने से सभी भय और बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं।

इस लेख में हम जानेंगे कि हनुमान अष्टक क्या है, इसे किसने लिखा, इसका पाठ कैसे करें, इसका महत्व और इसके लाभ।

हनुमान अष्टक क्या है | Hanuman Ashtak Kya Hai

हनुमान अष्टक एक अष्टक छंद में रचित स्तुति है, जिसमें आठ छंद होते हैं। इसमें हनुमान जी के पराक्रम, भक्ति, शक्ति और कृपा का वर्णन किया गया है। इस अष्टक में बताया गया है कि हनुमान जी किस प्रकार अपने भक्तों के संकट हरते हैं और उन्हें हर प्रकार की विपत्ति से बचाते हैं।

हनुमान अष्टक की रचना किसने की | Hanuman Ashtak Ki Rachna Kisne Ki

हनुमान अष्टक की रचना तुलसीदास जी ने की थी।

यह अष्टक हनुमान जी के चमत्कारी स्वरूप का वर्णन करता है और बताता है कि कैसे उनके स्मरण मात्र से ही भक्तों की पीड़ा दूर हो जाती है।

हनुमान अष्टक पाठ विधि | Hanuman Ashtak Path Vidhi

1. पाठ का समय:

  • सुबह और शाम को पाठ करना शुभ माना जाता है।
  • विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को इसका पाठ करने से शीघ्र फल प्राप्त होता है।
  • यदि कोई विशेष संकट हो, तो इसे 21 दिन तक नियमित रूप से पढ़ना चाहिए।

2. आवश्यक सामग्री:

  • एक स्वच्छ स्थान और शुद्ध मन
  • हनुमान जी की मूर्ति या चित्र
  • दीपक, अगरबत्ती और पुष्प
  • गुड़ और चने का प्रसाद
  • चमेली का तेल और सिंदूर

3. पाठ विधि:

  1. प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. हनुमान जी के समक्ष दीपक जलाएं और सिंदूर अर्पित करें।
  3. हनुमान अष्टक का श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ करें।
  4. पाठ के बाद हनुमान चालीसा या राम नाम का जप करें।
  5. गुड़ और चने का प्रसाद चढ़ाएं और दूसरों में बाँटें।

हनुमान अष्टक का महत्व | Hanuman Ashtak ka Mahatav

हनुमान अष्टक का पाठ करने से जीवन में कई शुभ परिवर्तन आते हैं। इसका महत्व इस प्रकार है –

  1. भय और शत्रुओं से रक्षा – हनुमान अष्टक का पाठ भूत-प्रेत बाधाओं से रक्षा करता है और शत्रु नाश करता है।
  2. सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं – हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है, इसलिए यह पाठ जीवन के सभी संकटों को हरने में सहायक है।
  3. मानसिक शांति और साहस – इसका पाठ तनाव, भय और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और व्यक्ति को साहस प्रदान करता है।
  4. कर्ज और धन संबंधी समस्याओं का निवारण – जिन लोगों पर कर्ज है या आर्थिक संकट है, उन्हें हनुमान अष्टक का नियमित पाठ करना चाहिए।
  5. शनि दोष और ग्रह बाधा से मुक्ति – हनुमान जी की पूजा से शनि की कृपा प्राप्त होती है और साढ़े साती और ढैय्या का प्रभाव कम होता है।
  6. विद्या और बुद्धि का विकास – विद्यार्थी और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले लोग यदि इस अष्टक का पाठ करें, तो उन्हें बुद्धि और स्मरण शक्ति की प्राप्ति होती है।

हनुमान अष्टक का पाठ करने के लाभ | Hanuman Ashtak Ka Path Karne ke Labh

1. भय और नकारात्मकता दूर होती है:

हनुमान अष्टक के पाठ से डर, भय, चिंता और तनाव समाप्त हो जाता है। इससे व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है।

2. स्वास्थ्य लाभ:

इसका पाठ करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार आता है। यह रोगों और बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक है।

3. बुरी नजर और टोने-टोटके से रक्षा:

यदि किसी व्यक्ति को बुरी नजर या नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव महसूस हो रहा हो, तो हनुमान अष्टक का पाठ तुरंत लाभदायक होता है।

4. कार्यों में सफलता:

हनुमान अष्टक का नियमित पाठ करने से सभी कार्य सफल होते हैं और जीवन में उन्नति मिलती है।

5. हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है:

इस पाठ को करने से हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन के सभी संकट समाप्त हो जाते हैं।

हनुमानाष्टक | Hanuman Ashtak

हनुमान अष्टक में हनुमान जी की अद्भुत लीलाओं, शक्ति, और उनके भक्तों के प्रति उनकी करुणा का वर्णन किया गया है। हनुमान अष्टक का पाठ करने से सभी प्रकार के भय, जैसे कि अज्ञात भय, मानसिक तनाव, और बुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है।

बाल समय रवि भक्षी लियो तब,

तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।

ताहि सों त्रास भयो जग को,

यह संकट काहु सों जात न टारो ।

देवन आनि करी बिनती तब,

छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।

को नहीं जानत है जग में कपि,

संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,

जात महाप्रभु पंथ निहारो ।

चौंकि महामुनि साप दियो तब,

चाहिए कौन बिचार बिचारो ।

कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,

सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥

अंगद के संग लेन गए सिय,

खोज कपीस यह बैन उचारो ।

जीवत ना बचिहौ हम सो जु,

बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।

हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,

लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ३ ॥

रावण त्रास दई सिय को सब,

राक्षसी सों कही सोक निवारो ।

ताहि समय हनुमान महाप्रभु,

जाए महा रजनीचर मारो ।

चाहत सीय असोक सों आगि सु,

दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ ४ ॥

बान लग्यो उर लछिमन के तब,

प्राण तजे सुत रावन मारो ।

लै गृह बैद्य सुषेन समेत,

तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।

आनि सजीवन हाथ दई तब,

लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ ५ ॥

रावन युद्ध अजान कियो तब,

नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।

श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,

मोह भयो यह संकट भारो I

आनि खगेस तबै हनुमान जु,

बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ६ ॥

बंधु समेत जबै अहिरावन,

लै रघुनाथ पताल सिधारो ।

देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,

देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।

जाय सहाय भयो तब ही,

अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ ७ ॥

काज किये बड़ देवन के तुम,

बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।

कौन सो संकट मोर गरीब को,

जो तुमसे नहिं जात है टारो ।

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,

जो कछु संकट होय हमारो ॥ ८ 

॥ दोहा ॥

लाल देह लाली लसे,

अरु धरि लाल लंगूर ।

वज्र देह दानव दलन,

जय जय जय कपि सूर ॥

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