रमा एकादशी, जिसे आश्विन कृष्ण एकादशी या कृष्णा एकादशी भी कहा जाता है, का विशेष महत्व है। यह एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है और व्रती अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धा से व्रत करते हैं। रमा एकादशी का व्रत पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
प्राचीन समय में मुचुकुंद नामक एक राजा थे, जो भगवान विष्णु के भक्त और सत्यप्रतिज्ञ थे। उनकी चन्द्रभागा नाम की कन्या थी। राजा ने उसकी शादी चन्द्रसेन कुमार शोभन के साथ की। एक दिन नगर में एकादशी के दिन कोई भी भोजन न करने की घोषणा हुई। शोभन ने अपनी पत्नी चन्द्रभागा से पूछा, “अब मुझे क्या करना चाहिए?”
चन्द्रभागा ने जवाब दिया, “प्रभु! आपको रमा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।” शोभन ने व्रत का पालन किया, लेकिन सूर्योदय होते-होते उनकी मृत्यु हो गई। राजा मुचुकुंद ने उनका दाह-संस्कार किया और चन्द्रभागा अपने पितृगृह में रहने लगीं।
रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन मन्दराचल पर्वत पर बसे देवपुर को प्राप्त हुए। वहां वे द्वितीय कुबेर की भांति रमणीय देवपुर में निवास करने लगे। एक दिन सोमशर्मा नामक एक ब्राह्मण तीर्थयात्रा के दौरान मन्दराचल पर्वत पर पहुंचे। उन्होंने शोभन को वहां देखा और उनके साथ पहुंचे। शोभन ने उन्हें बताया कि कार्तिक कृष्ण एकादशी के व्रत का पालन करने से उन्हें ऐसा देवपुर प्राप्त हुआ है।
शोभन ने कहा, “ब्रह्मण! इस नगर की स्थिरता मेरे व्रत पर निर्भर करती है। कृपया चन्द्रभागा को यह संदेश दीजिए कि मैंने एकादशी व्रत का महात्म्य समझा और अब यह नगर स्थिर रहेगा।”
सोमशर्मा ने चंद्रभागा को यह संदेश सुनाया | चन्द्रभागा ने अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर करने का संकल्प किया और दिव्य रूप, भोग और आभूषणों से विभूषित होकर अपने पति के साथ मन्दराचल पर्वत पर पहुंची। वहां उन्होंने ‘रमा’ एकादशी का पुण्य बताया और कहा, “मैंने आठ साल की उम्र से एकादशी व्रत किए हैं। इसके पुण्य से इस नगर की स्थिरता रहेगी और यहां वैभव का समृद्धि बनेगा।”
इस प्रकार रमा एकादशी का व्रत पापों के नाश और पुण्य की प्राप्ति का मार्ग है। जो इस व्रत को श्रद्धा से करता है, वह श्रीविष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। एकादशी के दोनों पक्षों का महत्व समान है, उन्हें अलग नहीं समझना चाहिए। जो व्यक्ति एकादशी के महात्म्य को सुनता है, वह सब पापों से मुक्त होकर श्री विष्णु के लोक में पहुँचता है।
रमा एकादशी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने पापों से मुक्त होकर आत्मा की शुद्धि के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। यह व्रत जीवन में संतुलन, शांति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। भक्तों को चाहिए कि वे इस व्रत को पूरे श्रद्धा और भक्ति से करें।
जय श्री हरि!
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