रमा एकादशी 2025 | Rama Ekadashi 2025

रमा एकादशी 2025 | Rama Ekadashi 2025

रमा एकादशी, जिसे आश्विन कृष्ण एकादशी या कृष्णा एकादशी भी कहा जाता है, का विशेष महत्व है। यह एकादशी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है और व्रती अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धा से व्रत करते हैं। रमा एकादशी का व्रत पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

रमा एकादशी 2025 की तिथि और समय (Rama Ekadashi 2025 Ki Tithi Aur Samay)

  • तिथि आरंभ: 23 सितंबर 2025, मंगलवार को सुबह 03:11 बजे।
  • तिथि समाप्त: 24 सितंबर 2025, बुधवार को सुबह 01:37 बजे।
  • पारण का समय: 25 सितंबर 2025 को प्रातः 06:10 बजे से 08:35 बजे तक।

रमा एकादशी का महत्व (Rama Ekadashi Ka Mahatav)

  1. धर्म और पुण्य का अर्जन: इस व्रत से भक्त धर्म और पुण्य की प्राप्ति करते हैं।
  2. पापों का नाश: रमा एकादशी पापों के नाश का माध्यम है।
  3. मोक्ष की प्राप्ति: भगवान विष्णु की कृपा से भक्त मोक्ष प्राप्त करते हैं।
  4. पितरों की शांति: यह व्रत पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष रूप से किया जाता है।
  5. ध्यान और साधना: व्रती इस दिन ध्यान, पूजा और मंत्र जप में लीन रहते हैं।

रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha)

प्राचीन समय में मुचुकुंद नामक एक राजा थे, जो भगवान विष्णु के भक्त और सत्यप्रतिज्ञ थे। उनकी  चन्द्रभागा नाम की कन्या थी। राजा ने उसकी शादी चन्द्रसेन कुमार शोभन के साथ की। एक दिन नगर में एकादशी के दिन कोई भी भोजन न करने की घोषणा हुई। शोभन ने अपनी पत्नी चन्द्रभागा से पूछा, “अब मुझे क्या करना चाहिए?”

चन्द्रभागा ने जवाब दिया, “प्रभु! आपको रमा एकादशी का व्रत करना चाहिए। इस व्रत से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।” शोभन ने व्रत का पालन किया, लेकिन सूर्योदय होते-होते उनकी मृत्यु हो गई। राजा मुचुकुंद ने उनका दाह-संस्कार किया और चन्द्रभागा अपने पितृगृह में रहने लगीं।

रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन मन्दराचल पर्वत पर बसे देवपुर को प्राप्त हुए। वहां वे द्वितीय कुबेर की भांति रमणीय देवपुर में निवास करने लगे। एक दिन सोमशर्मा नामक एक ब्राह्मण तीर्थयात्रा के दौरान मन्दराचल पर्वत पर पहुंचे। उन्होंने शोभन को वहां देखा और उनके साथ पहुंचे। शोभन ने उन्हें बताया कि कार्तिक कृष्ण एकादशी के व्रत का पालन करने से उन्हें ऐसा देवपुर प्राप्त हुआ है।

शोभन ने कहा, “ब्रह्मण! इस नगर की स्थिरता मेरे व्रत पर निर्भर करती है। कृपया चन्द्रभागा को यह संदेश दीजिए कि मैंने एकादशी व्रत का महात्म्य समझा और अब यह नगर स्थिर रहेगा।”

सोमशर्मा ने चंद्रभागा को यह संदेश सुनाया | चन्द्रभागा ने अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर करने का संकल्प किया और दिव्य रूप, भोग और आभूषणों से विभूषित होकर अपने पति के साथ मन्दराचल पर्वत पर पहुंची। वहां उन्होंने ‘रमा’ एकादशी का पुण्य बताया और कहा, “मैंने आठ साल की उम्र से एकादशी व्रत किए हैं। इसके पुण्य से इस नगर की स्थिरता रहेगी और यहां वैभव का समृद्धि बनेगा।”

इस प्रकार रमा एकादशी का व्रत पापों के नाश और पुण्य की प्राप्ति का मार्ग है। जो इस व्रत को श्रद्धा से करता है, वह श्रीविष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। एकादशी के दोनों पक्षों का महत्व समान है, उन्हें अलग नहीं समझना चाहिए। जो व्यक्ति एकादशी के महात्म्य को सुनता है, वह सब पापों से मुक्त होकर श्री विष्णु के लोक में पहुँचता है।

रमा एकादशी व्रत विधि (Rama Ekadashi Vrat Vidhi)

  1. स्नान और संकल्प: प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
  2. भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीप जलाएं, तुलसी और पुष्प अर्पित करें।
  3. व्रत कथा का श्रवण: रमा एकादशी की कथा पढ़ें या सुनें।
  4. मंत्र जप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करें।
  5. उपवास का पालन: व्रत के दौरान अन्न का त्याग करें और केवल फलाहार करें।
  6. दान का महत्व: ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, और धन का दान करें।
  7. lपारण: द्वादशी तिथि पर सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।

रमा एकादशी के लाभ (Rama Ekadashi Ke Labh)

  1. पितरों की शांति: व्रत से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
  2. धन-धान्य की प्राप्ति: व्रत से परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।
  3. आध्यात्मिक शुद्धि: भगवान विष्णु की आराधना से आत्मा की शुद्धि होती है।
  4. मोक्ष की प्राप्ति: भक्त को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
  5. धर्म और पुण्य का अर्जन: व्रत से धर्म और पुण्य की वृद्धि होती है।

रमा एकादशी का संदेश (Rama Ekadashi Ka Sandesh)

रमा एकादशी हमें यह सिखाती है कि हमें अपने पापों से मुक्त होकर आत्मा की शुद्धि के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। यह व्रत जीवन में संतुलन, शांति और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। भक्तों को चाहिए कि वे इस व्रत को पूरे श्रद्धा और भक्ति से करें।

जय श्री हरि!

Read More : Related Content