शिव पुराण की रोचक कथाएं (Shiv Puran Ki Rochak Kathaye)

शिव पुराण की रोचक कथाएं (Shiv Puran Ki Rochak Kathaye)

शिव पुराण (Shiv Puran), भगवान शिव की महिमा और उनके भक्तों की अद्भुत कथाओं का संग्रह है। यह ग्रंथ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आध्यात्मिकता और नैतिकता का मार्गदर्शन भी प्रदान करता है। यहां शिव पुराण की पांच प्रमुख और प्रेरणादायक कथाएं दी गई हैं, जो पाठकों को भगवान शिव के विविध स्वरूपों और उनके चरित्र की गहराई को समझने में मदद करती हैं।

1. माता सती का त्याग और शिव का विराग (Sati Ka Tyag Aur Shiv Ka Virag)

माता सती, दक्ष प्रजापति की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थीं। सती का विवाह शिव से हुआ, जिनका जीवन सादगीपूर्ण था और भौतिक सुखों से परे थे। दक्ष शिव को अपने स्तर के योग्य नहीं मानते थे और हमेशा उनका अपमान करते थे।

एक बार, राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया और माता सती और भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती, पिता के घर जाने की जिद पर अड़ीं और बिना शिव की अनुमति के वहां पहुंचीं। यज्ञ में दक्ष ने शिव जी का अपमान किया और उनके विरुद्ध कटु शब्द कहे। यह देखकर माता सती को गहरा दुःख हुआ, और उन्होंने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में समर्पित कर दिया।

सती की मृत्यु से शिव अत्यंत क्रोधित और शोकाकुल हो गए। उन्होंने अपने गणों को भेजकर यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का वध कर दिया। सती के वियोग में शिवजी ने समाधि लगा ली। माता सती ने अगले जन्म में मां पार्वती के रूप में जन्म लिया और शिव से पुनः विवाह किया। यह कथा प्रेम, त्याग, और ईश्वर भक्ति का प्रतीक है।

2. मां गंगा का धरती पर अवतरण (Maa Ganga Ka Dharti Par Avataran)

एक समय की बात है, राजा भगीरथ अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए गंगा को धरती पर लाने की तपस्या कर रहे थे। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा को पृथ्वी पर भेजने का आदेश दिया। लेकिन मां गंगा का प्रवाह इतना तीव्र था कि पृथ्वी उनका वेग सहन नहीं कर पाती तब भगवान शिव ने गंगा के वेग को नियंत्रित करने के लिए अपनी जटाओं में उन्हें समाहित कर लिया।

शिव की जटाओं से बहकर गंगा धीरे-धीरे धरती पर उतरीं और राजा भगीरथ के मार्गदर्शन में उनके पूर्वजों तक पहुंचीं। गंगा के पवित्र जल से भगीरथ के पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हुआ। गंगा का धरती पर आगमन जीवन, पवित्रता और भक्ति का प्रतीक है। भगवान शिव की कृपा के बिना यह असंभव था।

3. जालंधर और शिव का युद्ध (Jalandhar Aur Shiv Ka Yuddh)

जलंधर एक शक्तिशाली असुर था, जिसे उसकी पत्नी वृंदा की पवित्रता और तपस्या के कारण अजेयता का वरदान मिला था। उसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। उसने अपनी शक्ति के मद में त्रिलोक पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया।

देवताओं ने भगवान शिव से सहायता मांगी। शिव ने जलंधर को पराजित करने के लिए युद्ध किया। जलंधर को युद्ध में पराजित करने के लिए भगवान विष्णु जलंधर का रूप धारण कर वृंदा की तपस्या भंग करने के लिए उसके पास चले गए और वृंदा की तपस्या भंग हो गई | जिसके फलस्वरूप युद्ध में शिव ने अपनी त्रिनेत्र की शक्ति का प्रयोग कर जलंधर का अंत किया। जलंधर की मृत्यु के बाद वृंदा ने अपने पति के वियोग में भगवान विष्णु को श्राप दिया, और वह तुलसी के पौधे के रूप में परिवर्तित हो गईं।

4. रावण द्वारा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना (Ravan Dwara Baidyanath Jyotirlinga Ki Sthapana)

शिव पुराण के अनुसार, रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उसने भगवान शिव को अपने आराध्य देव के रूप में मानकर अपनी भक्ति अर्पित की। किंतु इतने कठोर तप के बाद भी जब शिव जी प्रसन्न नहीं हुए तो  रावण ने अपने शीश को काटकर उन्हें अर्पित करना प्रारंभ कर दिया l जब रावण ने एक – एक कर के अपने 9 शीश काट दिए और 10वा शीश अर्पित किया तब शिव जी ने प्रसन्न होकर रावण को दर्शन दिए और उसके 9 शीश पहले जैसे कर दिए । जबर शिव जी द्वारा रावण से वर मांगने को कहा गया तो रावण ने उन्हें अपने साथ लंका ले जाने का आग्रह किया l 

तब शिव जी ने उसे एक शिवलिंग प्रदान किया और कहा कि वह इसे लेकर लंका जा सकता है, लेकिन यह चेतावनी दी कि यदि वह इसे मार्ग में किसी स्थान पर भूमि पर रखता है, तो यह शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो जाएगा।

रावण ने इस शिवलिंग को लेकर लंका की ओर यात्रा प्रारंभ की, लेकिन यात्रा के दौरान जब उसे लघुशंका आई । तब रावण ने वहां आसपास एक ग्वाले को देख कर उससे शिवलिंग प्रार्थनापूर्वक शिवलिंग सौंप दिया एक मुहूर्त बीतते – बीतते जब ग्वाला शिवलिंग के भर से अत्यंत पीड़ित हुआ तो उसने शिवलिंग को धरती पर रख दिया तभी से वह शिवलिंग देवघर में स्थापित हो गया और यह स्थान बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में विख्यात हो गया।

5. शिव और बाणासुर की कथा (Shiv Aur Banasur Ki Katha)

बाणासुर, भगवान शिव का परम भक्त और असुरों का राजा था। उसने शिव की तपस्या कर उनसे अजेयता का वरदान प्राप्त किया। अपनी शक्ति के मद में बाणासुर ने त्रिलोक में आतंक मचाना शुरू कर दिया।

बाणासुर की पुत्री उषा ने भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से प्रेम किया। बाणासुर ने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया। भगवान कृष्ण ने बाणासुर पर आक्रमण किया, लेकिन शिव ने अपने भक्त की रक्षा के लिए युद्ध किया। युद्ध में शिव और कृष्ण आमने-सामने आए, लेकिन शिव ने जल्द ही महसूस किया कि उनका भक्त अहंकार के कारण गलत मार्ग पर है। उन्होंने बाणासुर को सुधरने का अवसर दिया और कृष्ण से युद्ध समाप्त करने का अनुरोध किया।

निष्कर्ष (Conclusion)

शिव पुराण की कथाएं न केवल भगवान शिव के जीवन और उनकी लीलाओं का वर्णन करती हैं, बल्कि ये हमें नैतिक और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देती हैं। इन कथाओं के माध्यम से भगवान शिव की शक्ति, कृपा और उनके भक्तों के प्रति स्नेह को समझा जा सकता है। शिव पुराण, शिव के आदर्श और उनके जीवन से जुड़ी शिक्षाओं का अद्भुत संग्रह है।

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