श्रीकृष्ण जन्म कथा | Shri Krishna Janam Katha

श्रीकृष्ण जन्म कथा | Shri Krishna Janam Katha

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म केवल एक साधारण घटना नहीं थी, बल्कि यह अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि जब-जब पाप बढ़ता है और सत्य कमजोर होने लगता है, तब वे धरती पर अवतरित होते हैं—

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥”

इसका अर्थ है कि जब भी धरती पर अधर्म का विस्तार होता है, तब भगवान धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं। उनका जन्म केवल कंस को मारने के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता को सही मार्ग दिखाने के लिए हुआ था। उनके जीवन और उपदेशों से आज भी दुनिया प्रेरणा लेती है

कंस का अत्याचार और भविष्यवाणी (Kans Ka Atyachar Aur Bhavishyavani)

मथुरा का राजा कंस बहुत क्रूर था। जब उसकी बहन देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ, तो आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवाँ पुत्र उसका वध करेगा। यह सुनकर कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और उनकी संतानों को एक-एक करके मारने लगा।

जब देवकी के गर्भ में सातवीं संतान आई, तो भगवान की कृपा से वह रोहिणी माता के गर्भ में स्थानांतरित हो गई, जो आगे चलकर बलराम बने। फिर, जब आठवीं संतान के रूप में श्रीकृष्ण आने वाले थे, तो पूरी सृष्टि जैसे रुकी हुई थी।

श्रीकृष्ण का दिव्य जन्म (Shri Krishna Ka Divya Janam)

अर्धरात्रि का समय था, कारागार में अंधकार छाया था, चारों ओर शांति थी। तभी भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। जन्म लेते ही उन्होंने अपने माता-पिता को दर्शन दिए और बताया कि वे धरती पर धर्म की स्थापना के लिए आए हैं। उन्होंने वसुदेव को आदेश दिया कि वे उन्हें गोकुल में नंद बाबा के घर छोड़ आएँ।

वासुदेव का गोकुल गमन (Vasudev Ka Gokul Gaman)

भगवान की माया से कारागार के दरवाजे स्वयं खुल गए और पहरेदार गहरी नींद में सो गए। वसुदेव ने श्रीकृष्ण को टोकरी में रखा और यमुना नदी पार करने लगे। आश्चर्य की बात यह थी कि पानी अपने आप नीचे झुक गया और श्रीकृष्ण के चरणों को छूकर आगे बढ़ने दिया। जब वे गोकुल पहुँचे, तो वहाँ नंद बाबा के घर में एक कन्या जन्मी थी। वसुदेव ने श्रीकृष्ण को वहाँ रखा और कन्या को लेकर वापस लौट आए।

कंस का छल और देवी का चमत्कार (Kans Ka Chhal Aur Devi Ka Chamatkar)

सुबह होते ही जब कंस को पता चला कि देवकी के गर्भ से एक कन्या जन्मी है, तो उसने उसे मारने की कोशिश की। लेकिन वह कन्या देवी का रूप धारण कर आकाश में चली गई और कंस से कहा कि उसका वध करने वाला बालक गोकुल में सुरक्षित है। यह सुनकर कंस और अधिक क्रूर हो गया और उसने गोकुल के सभी नवजात शिशुओं को मारने का आदेश दे दिया।

श्रीकृष्ण का बचपन और उद्देश्य (Shri Krishna Ka Bachpan Aur Uddeshya)

गोकुल में माता यशोदा और नंद बाबा के संरक्षण में श्रीकृष्ण का पालन-पोषण हुआ। उन्होंने माखन चुराना, गोपियों के संग रास, गाय चराना जैसी अनेक बाल लीलाएँ कीं। लेकिन उनका अवतार केवल लीला करने के लिए नहीं था।

उन्होंने बचपन में ही कई राक्षसों का वध किया—

  1. पूतना – जिसने उन्हें विष पिलाने का प्रयास किया।
  2. शकटासुर – जिसे उन्होंने झूले से गिरा कर मारा।
  3. कालिय नाग – जिसके फन पर नृत्य कर उसे पराजित किया।
  4. अघासुर और बकासुर – जिन्होंने श्रीकृष्ण से युद्ध किया लेकिन नष्ट हो गए।

लेकिन श्रीकृष्ण का अवतार केवल बाल लीलाओं के लिए नहीं था। उन्होंने इस संसार को धर्म का सही मार्ग दिखाने के लिए अवतार लिया था।

श्रीमद्भगवद्गीता में उन्होंने अर्जुन को यह सिखाया—

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
(अर्थात, कर्म करने पर तुम्हारा अधिकार है, लेकिन फल की चिंता मत करो।)

उन्होंने यह भी कहा कि जब भी अधर्म बढ़ेगा, वे धरती पर अवतार लेंगे और धर्म की रक्षा करेंगे।

निष्कर्ष (Conclusion)

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म केवल कंस के वध के लिए नहीं, बल्कि मानवता को धर्म का मार्ग दिखाने के लिए हुआ था।

  • उन्होंने भक्ति, प्रेम और निष्काम कर्म का संदेश दिया।
  • उन्होंने संसार को सिखाया कि सत्य और धर्म की सदा विजय होती है।
  • श्रीमद्भगवद्गीता में उन्होंने जीवन का सर्वोच्च ज्ञान दिया, जो आज भी हमें प्रेरणा देता है।

श्रीकृष्ण का जन्म केवल एक पौराणिक घटना नहीं, बल्कि धर्म, नीति और भक्ति का संदेश है। उनकी कथा हमें यह सिखाती है कि चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियाँ क्यों न हों, सत्य और धर्म की हमेशा जीत होती है।

“राधे कृष्ण! जय श्रीकृष्ण!”

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