सनातन धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में पूजा जाता है। वे करुणामय, शान्त, और सभी जीवों पर कृपा करने वाले हैं। उनकी उपासना से जीवन में संतुलन, रक्षा और सद्गति प्राप्त होती है। “शान्ताकारं भुजगशयनं” स्तुति श्री हरि विष्णु की सर्वश्रेष्ठ स्तुतियों में से एक मानी जाती है। यह श्लोक श्री विष्णु के दिव्य रूप, गुणों और उनके संरक्षणकारी स्वरूप का अद्भुत वर्णन करता है।
यह स्तुति विशेषकर तब पढ़ी जाती है जब मन अशांत हो, भय हो या जीवन में मार्गदर्शन की आवश्यकता हो। इसका पाठ मानसिक स्थिरता और आत्मिक बल प्रदान करता है।
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥
जिनकी आकृति स्वरूप अतिशय शांत है,जो जगत के आधार व देवताओं के भी ईश्वर (राजा) है, जो शेषनाग की शैया पर विश्राम किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है और जिनका वर्ण श्याम रंग का है, जिनके अतिशय सुंदर रूप का योगीजन ध्यान करते हैं, जो गगन के समान सभी जगहों पर छाए हुए हैं, जो जन्म-मरण के भय का नाश करने वाले हैं, जो सम्पूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जिनकी भक्तजन बन्दना करते हैं, ऐसे लक्ष्मीपति कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को अनेक प्रकार से विनती कर प्रणाम करता हूँ ।
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥
ब्रह्मा, शिव, वरुण, इन्द्र, मरुद्गण जिनकी दिव्य स्तोत्रों से स्तुति गाकर रिझाते है, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित प्रसन्न हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुर जिनके अंत को नही पाते, उन नारायण को सौरभ नमस्कार करता हैं ॥
“शान्ताकारं भुजंगशयनं” केवल एक श्लोक नहीं है, यह भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का साधन है। इसमें उनके व्यापक, शांत, और करुणामय स्वरूप का ऐसा भावपूर्ण चित्रण है जो भक्त के मन को स्थिरता और श्रद्धा से भर देता है। जो व्यक्ति श्रद्धा से इसका पाठ करता है, उसका जीवन विष्णु कृपा से सुख, सुरक्षा और संतोष से भर जाता है।
ॐ नमो नारायणाय
जय श्री हरि