Shrimad Bhagwat Mahapuran : सनातन धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक श्रीमद्भागवत महापुराण न केवल ईश्वर की भक्ति का संदेश देता है, बल्कि जीवन के गूढ़ रहस्यों को भी उजागर करता है। इसमें भगवान श्रीहरि के अवतारों, भक्तों के अनुभवों, और धर्म-संस्कार से जुड़ी अनेक प्रेरणादायक कथाएँ वर्णित हैं। आज हम भागवत पुराण की ऐसी पाँच अनसुनी कथाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं, जो न केवल ज्ञानवर्धक हैं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी समृद्ध करती हैं।
प्रियव्रत महाराज स्वयंभू मनु के पुत्र और राजा ऋषभदेव के पूर्वज थे। वे अत्यंत तपस्वी और धर्मपरायण थे, लेकिन उन्हें सांसारिक भोग-विलास में रुचि नहीं थी।
जब उन्होंने संन्यास ग्रहण करने का विचार किया, तब ब्रह्मा जी स्वयं उनके पास आए और कहा, “तुम्हें पृथ्वी का संचालन करना होगा। यदि तुम राजा नहीं बने, तो सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा।”
प्रियव्रत ने ब्रह्मा जी की बात मानी और राजा बन गए। उन्होंने इतने वर्षों तक शासन किया कि देवता भी उनकी शक्ति से प्रभावित हो गए।
एक दिन उन्होंने देखा कि सूर्य केवल आधे भाग में ही प्रकाश डालता है और शेष भाग अंधकार में रहता है। उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से सूर्य के समान सात और चमकती हुई अग्नि रेखाएँ बनाईं, जिससे संपूर्ण पृथ्वी पर प्रकाश फैल गया।
प्रियव्रत ने अपने दिव्य रथ से पृथ्वी के सात चक्कर लगाए, जिससे सात द्वीपों (जंबूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप और पुष्करद्वीप) का निर्माण हुआ। यह घटना ब्रह्मांड की संरचना को दर्शाती है और बताती है कि राजा का कर्तव्य केवल शासन करना नहीं, बल्कि सृष्टि को सुचारू रूप से चलाना भी है।
भगवान विष्णु उनके कर्तव्यपरायणता से प्रसन्न हुए और उन्हें अमरत्व प्रदान किया।
सीख: जिम्मेदारी से भागना नहीं चाहिए, बल्कि उसे स्वीकार करके धर्मपूर्वक निभाना चाहिए।
महाराज ययाति चंद्रवंश के प्रतापी राजा थे। उन्होंने देवयानी नामक कन्या से विवाह किया, लेकिन उनका मन अन्य स्त्रियों की ओर भी आकर्षित हुआ।
जब उनके कर्मों से ऋषि शुक्राचार्य क्रोधित हुए, तो उन्होंने ययाति को वृद्ध होने का श्राप दे दिया। राजा ने विनती की कि वे अपनी वासना तृप्त किए बिना वृद्धावस्था नहीं चाहते। तब उन्होंने अपने पाँचों पुत्रों से कहा कि कोई एक अपनी युवावस्था उन्हें दे दे।
उनके सभी पुत्रों ने मना कर दिया, लेकिन उनके सबसे छोटे पुत्र पुरु ने अपनी युवावस्था दे दी।
राजा ययाति ने हजारों वर्षों तक भोग-विलास किया, लेकिन अंततः उन्हें एहसास हुआ कि “वासना को तृप्त करने से वासना समाप्त नहीं होती, बल्कि और बढ़ती है।”
यह समझकर उन्होंने युवावस्था अपने पुत्र को लौटा दी और संन्यास ग्रहण कर भगवान की शरण में चले गए।
सीख: भौतिक सुखों की कोई सीमा नहीं होती, लेकिन सच्चा आनंद केवल भगवान की भक्ति में ही प्राप्त होता है।
संदर्भ: श्रीमद्भागवत महापुराण, एकादश स्कंध (अध्याय 7-9)
भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का अवतार माना जाता है। वे एक अवधूत की तरह विचरण करते थे और भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहते थे। एक दिन राजा यदु ने उनसे पूछा, “हे प्रभु! आप इतने तेजस्वी होते हुए भी किसके शिष्य हैं?”
भगवान दत्तात्रेय ने उत्तर दिया – “मेरे 24 गुरु हैं, और मैंने इनसे जीवन के गहरे रहस्य सीखे हैं।”
उन्होंने समझाया कि उनके गुरु पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, चंद्रमा, सूर्य, कबूतर, अजगर, समुद्र, पतंगा, मधुमक्खी, हाथी, मृग, मछली, वैश्या पिंगला, कुरर (शिकारी पक्षी), बालक, कुम्हार, सर्प, मकड़ी, भृंगी कीड़ा, तितली और पानी में गिरा तीर हैं।
पृथ्वी से – सहनशीलता और सबको समान रूप से संरक्षण देना सीखा।
सूर्य से – बिना किसी भेदभाव के प्रकाश और ऊर्जा देना सीखा।
समुद्र से – गंभीरता और संतुलित स्वभाव रखना सीखा।
मधुमक्खी से – अति संग्रह न करने की सीख ली।
सीख: हर व्यक्ति को अपने आसपास की प्रकृति और घटनाओं से सीखना चाहिए, क्योंकि ज्ञान केवल ग्रंथों में ही नहीं, बल्कि सृष्टि के कण-कण में भी छिपा है।
संदर्भ: श्रीमद्भागवत महापुराण, पंचम स्कंध (अध्याय 3-6)
राजा ऋषभदेव भगवान विष्णु के अवतार थे और उन्होंने अपने 100 पुत्रों को जीवन के सत्य का उपदेश दिया। उनके ज्येष्ठ पुत्र भरत इतने महान थे कि उनके नाम पर इस देश को “भारतवर्ष” कहा गया।
एक समय, जब राजा ऋषभदेव ने देखा कि सांसारिक सुखों में लोग लिप्त हो रहे हैं, तो उन्होंने वैराग्य धारण करने का निश्चय किया। उन्होंने राजपाट छोड़कर सन्यास ग्रहण कर लिया और अंततः पूर्ण आत्मज्ञान को प्राप्त किया।
सीख: सच्चा राजा वही होता है जो केवल राजपाट पर ही नहीं, बल्कि आत्मज्ञान पर भी ध्यान देता है। सांसारिक जीवन में रहते हुए भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
संदर्भ: श्रीमद्भागवत महापुराण, बारहवां स्कंध (अध्याय 9-10)
महर्षि मार्कण्डेय भगवान शिव के परम भक्त थे और उन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त था। लेकिन वे जानना चाहते थे कि प्रलय का अनुभव कैसा होता है?
भगवान विष्णु ने उनकी जिज्ञासा का उत्तर देने के लिए उन्हें प्रलय के बीच डाल दिया।
उन्होंने देखा कि संपूर्ण सृष्टि जलमग्न हो गई है।
हर ओर तूफान, भयंकर लहरें और विनाश का दृश्य था।
जब उन्होंने सहारे के लिए इधर-उधर देखा, तो अचानक एक पीपल के पत्ते पर एक दिव्य बालक (बाल मुकुंद) को लेटे हुए देखा।
यह बालक स्वयं भगवान श्रीहरि थे, जिन्होंने सृष्टि को अपने भीतर समेट रखा था।
सीख: संसार का हर जीव नश्वर है, केवल भगवान ही शाश्वत हैं। उनकी शरण में जाने से ही प्रलय के संकटों से बचा जा सकता है।
श्रीमद्भागवत महापुराण की ये कथाएँ हमें सिखाती हैं कि धर्म, सत्य, और भक्ति ही जीवन का मूल आधार हैं। सांसारिक सुख क्षणिक हैं, लेकिन आत्मज्ञान और प्रभु की शरण ही वास्तविक मोक्ष प्रदान करते हैं। प्रत्येक कथा हमें जीवन के किसी न किसी गूढ़ सत्य से परिचित कराती है, जिससे हम धैर्य, समर्पण और कर्तव्यपरायणता का महत्व समझ सकते हैं। भगवान की भक्ति और सत्यनिष्ठा से ही जीवन सार्थक बनता है।
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