भगवान श्रीराम, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, का जन्म त्रेतायुग में हुआ था। उनका अवतरण अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए हुआ। उनकी जन्मकथा अत्यंत पवित्र, अद्भुत और प्रेरणादायक है। आइए इस कथा को विस्तार से जानते हैं।
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Toggleअयोध्या और राजा दशरथ की चिंता | Ayodhya Or Raja Dashrath Ki Chinta
प्राचीन काल में कौशल देश की राजधानी अयोध्या थी, जहाँ महाराज दशरथ राज्य करते थे। वे अत्यंत पराक्रमी, धर्मपरायण और प्रजा का कल्याण करने वाले राजा थे। उनके तीन रानियाँ—कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी—थीं, लेकिन उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी। इस कारण वे अत्यंत दुखी और चिंतित रहते थे। राज्य का कोई उत्तराधिकारी न होने के कारण वे राजगुरु वशिष्ठ के पास गए और अपनी समस्या बताई।
पुत्रेष्ठि यज्ञ और अग्निदेव का प्रसाद | Putreshti Yagya Or Agnidev ka Prasad
महर्षि वशिष्ठ ने राजा दशरथ को ऋषि श्रृंगी के माध्यम से ‘पुत्रेष्ठि यज्ञ’ कराने की सलाह दी। इस यज्ञ के दौरान यज्ञकुंड से अग्निदेव प्रकट हुए और उन्होंने राजा दशरथ को दिव्य खीर का एक पात्र दिया। अग्निदेव ने कहा कि यह खीर अपनी रानियों में बाँट दें, इससे उन्हें उत्तम पुत्रों की प्राप्ति होगी। राजा दशरथ ने खीर का एक भाग महारानी कौशल्या को, दूसरा भाग महारानी कैकेयी को और शेष भाग महारानी सुमित्रा को दिया।
श्रीराम का जन्म | Shri Ram ka Janam
कुछ समय पश्चात्, चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में जब चारों ओर शुभ संयोग बन रहे थे, तब महारानी कौशल्या के गर्भ से भगवान श्रीराम का अवतरण हुआ। उसी समय महारानी कैकेयी के पुत्र भरत तथा महारानी सुमित्रा के दो पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।
भगवान श्रीराम के जन्म के समय संपूर्ण ब्रह्मांड में दिव्य आभा फैल गई। देवताओं ने पुष्प वर्षा की, गंधर्वों और अप्सराओं ने आनंद मंगल गान किया, और अयोध्या नगरी में हर्ष की लहर दौड़ गई।
श्रीराम का स्वरूप और गुण | Shri Ram Ka Swaroop Or Gun
भगवान श्रीराम का स्वरूप अत्यंत मनमोहक था। उनका रंग श्याम था, नेत्र विशाल और कमल के समान थे। वे करुणा, दया, शौर्य और मर्यादा की प्रतिमूर्ति थे। बचपन से ही वे धर्म के प्रति निष्ठावान और सत्यप्रिय थे। उनके बाल्यकाल की लीलाएँ अत्यंत मधुर और भक्तों के हृदय को आनंदित करने वाली थीं।
अवध में आनंदोत्सव | Avadh Me Aanandotsav
भगवान श्रीराम के जन्म के उपलक्ष्य में अयोध्या में भव्य उत्सव मनाया गया। संपूर्ण नगर को सजाया गया, दीप जलाए गए, और भव्य भंडारे आयोजित किए गए। सभी ऋषि-मुनि, देवता और नगरवासी प्रसन्नचित्त होकर राजा दशरथ को बधाई देने आए।
निष्कर्ष | Conclusion
भगवान श्रीराम का जन्म धर्म की पुनर्स्थापना, अधर्म का नाश और मानवता को सही मार्ग दिखाने के लिए हुआ था। उनका जीवन और आदर्श आज भी मानव समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं। इसी कारण हर वर्ष रामनवमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, और भक्तगण श्रद्धा से उनका स्मरण करते हैं।
“जय श्रीराम!”
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