Holi 2025 | होली 2025: तिथि, विधि, महत्व और पौराणिक कथा

Holi 2025 | होली 2025: तिथि, विधि, महत्व और पौराणिक कथा

Holi 2025 : होली का पर्व भारत का एक प्रमुख त्यौहार है, जो रंगों, उत्सव और भाईचारे का प्रतीक है। इस पर्व में होलिका दहन और रंगों से खेलने की परंपरा है। आइए विस्तार से जानते हैं होली 2025 के बारे में ।

होली 2025 की तिथि और पूजन मुहूर्त (Holi 2025 Ki Tithi Aur Pujan Muhurat)

होली कब है 2025 में?

होली का त्योहार मुख्य रूप से दो दिनों तक मनाया जाता है:

  • होलिका दहन (छोटी होली) – 13 मार्च 2025 (गुरुवार)
  • धुलंडी (रंग वाली होली) – 14 मार्च 2025 (शुक्रवार)

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

  • होलिका दहन मुहूर्त: शाम 06:31 बजे से रात 08:56 बजे तक
  • भद्रा पूंछ: दोपहर 06:59 बजे से 08:16 बजे तक
  • भद्रा मुख: शाम 08:15 बजे से 10:26 बजे तक

(मुहूर्त समय स्थान के अनुसार भिन्न हो सकता है, इसलिए स्थानीय पंचांग अवश्य देखें।)

होलिका पूजन विधि (Holika Pujan Vidhi)

होलिका दहन से पहले पूजा करना शुभ माना जाता है। इसे विधिपूर्वक करें:

  1. पूजा सामग्री: गोबर के उपले, गंगाजल, रोली, अक्षत, फूल, नारियल, कच्चा सूत, गुड़ और धूप।
  2. पूजन विधि:
    • होलिका दहन स्थल को गंगाजल से पवित्र करें।
    • वहां गोबर के उपले और लकड़ी से चिता बनाएं।
    • उसमें सूत लपेटें और रोली-अक्षत से तिलक करें।
    • धूप, दीप और गुड़ अर्पित करें।
    • पौराणिक कथा का स्मरण करते हुए अग्नि प्रज्वलित करें।
    • परिक्रमा करते हुए गेंहू की बालियां और नारियल अर्पित करें।

होली क्यों मनाई जाती है? (Holi Kyun Manayi Jaati Hai)

होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह हमें जीवन में सकारात्मकता, प्रेम और क्षमा का संदेश देता है। इसे फसल के उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है, जब रबी की फसल तैयार होती है।

होलिका से जुड़ी पौराणिक कथा (Holika Se Judi Pauranik Katha)

होलिका दहन की कहानी सतयुग में राजा हिरण्यकश्यप और उनके पुत्र प्रह्लाद से जुड़ी है।

सतयुग में हिरण्यकश्यप को एक असुर राजा कहा जाता था। वह बहुत शक्तिशाली था और उसने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करके जो वरदान प्राप्त किया था, जिससे उसे कोई भी मनुष्य, न देवता, न दिन में और न रात में, न घर के भीतर और न बाहर, न किसी अस्त्र से और न किसी शस्त्र से मारा जा सकता था । इस वरदान के कारण वह अत्यंत अभिमानी हो गया और स्वयं को भगवान का दर्जा दे दिया। उसने अपने राज्य में यह आदेश जारी किया कि सभी लोग केवल अपनी पूजा करेंगे और अन्य किसी भी देवता को नहीं मानेंगे।

लेकिन हिरण्यकश्यप के पुत्र, प्रह्लाद, भगवान विष्णु के परम भक्त थे। प्रह्लाद का हृदय भगवान की भक्ति से परिपूर्ण था और वह अपने पिता के अभिमानपूर्ण आदेश का पालन करने से मना कर देता था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति से रोकने के लिए कई प्रयास किए। उसने प्रहलाद को मारने की कई योजनाएं बनाईं। कभी उसे ऊंची चट्टान से गिरा दिया गया, तो कभी जहर देने की कोशिश की गई, हर बार भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की।

अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका के पास एक विशेष वरदान थी कि उसे अग्नि में नहीं जलाया जा सकता था। हिरण्यकश्यप ने सोचा कि होलिका के इस वरदान से प्रहलाद को मारा जा सकता हैं । उसने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को अपने गोद में लेकर अग्नि में बैठे।होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोद में ले लिया और अग्नि के बीच बैठ गई।

लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ, जबकि होलिका स्वयं जलकर भस्म हो गई थी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि होलिका ने अपने वैभव का अपमान किया था और भगवान के प्रतिबंधों को चुनौती दी थी। इस घटना की स्मृति में होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है, जो बुराई पर विजय का प्रतीक है।

होली का महत्व (Holi Ka Mahatav)

  1. सामाजिक महत्व: यह त्यौहार आपसी मेलजोल, क्षमा और सद्भावना का प्रतीक है।
  2. आध्यात्मिक महत्व: बुराई पर अच्छाई की जीत और धर्म की स्थापना का संदेश देता है।
  3. कृषि का पर्व: नई फसल की खुशी में किसानों के लिए यह खास दिन है।
  4. रंगों का पर्व: यह जीवन में रंग, उमंग और उत्साह भरने का प्रतीक है।

निष्कर्ष (Conclusion)

होली केवल रंगों का त्यौहार नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में अच्छाई, सच्चाई और प्रेम का रंग भरता है। होलिका दहन हमें यह सिखाता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, सत्य और धर्म के आगे टिक नहीं सकती। आइए, इस होली पर हम अपने मन के मैल को भी जलाएं और रंगों के इस पावन पर्व को प्रेम और आनंद के साथ मनाएं।

होली की हार्दिक शुभकामनाएं!

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