ब्रह्म पुराण (Brahma Purana) अठारह महापुराणों में से एक अत्यंत प्राचीन और महत्वूर्ण ग्रंथ है। इसका मुख्य उद्देश्य सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्म के ज्ञान, शिक्षाओं और उनके द्वारा की गई सृष्टि-रचना की प्रक्रिया को विस्तार से समझाना है। इसे राजपुराण भी कहा जाता है क्योंकि इसमें राजाओं के कर्तव्यों, धर्म, नीति और समाज कल्याण के लिए मार्गदर्शन दिया गया है।
यह पुराण केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक शिक्षा का भी स्रोत है। इसमें भक्ति, ज्ञान और कर्म — तीनों मार्गों को समान रूप से महत्त्व दिया गया है। यह लोककल्याण, तप, व्रत, तीर्थयात्रा और सत्कर्मों के महत्व को उजागर करता है। इसमें वर्णित कथाएँ न केवल गूढ़ हैं, बल्कि आज के युग में भी नैतिक मार्गदर्शन देने वाली हैं।
ब्रह्म पुराण में लगभग 245 अध्याय और 10,000 श्लोक हैं। इसे दो मुख्य भागों में विभाजित किया गया है:
ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्म जी ने तपस्या के माध्यम से सृष्टि की रचना की। इस रचना में मनु, प्रजापति, ऋषि, गंधर्व, अप्सराएँ, असुर, और देवता उत्पन्न हुए। सृष्टि की उत्पत्ति का क्रमबद्ध और दार्शनिक वर्णन इसमें मिलता है।
इस पुराण में ब्रह्म, विष्णु और महेश — तीनों देवों की शक्तियों को एक दूसरे से जुड़ा हुआ बताया गया है। यह बताता है कि सभी देवता ब्रह्म से ही उत्पन्न होते हैं और वही अंतिम कारण हैं।
ब्रह्म पुराण जीवन के चार पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करने की विधियों को प्रस्तुत करता है। इसमें व्रत, श्राद्ध, यज्ञ, और तपस्या की महिमा बताई गई है। यह व्यक्ति को एक संतुलित, धार्मिक और नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है। यह शिक्षा देता है कि संतुलित जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है।
ब्रह्म पुराण भारत के कई प्रमुख तीर्थों की महत्ता का वर्णन करता है:
इस पुराण में एक राजा के कर्तव्यों, प्रजा पालन, न्याय प्रणाली और नीति शास्त्र का उल्लेख है। यह बताता है कि एक आदर्श राजा वही है जो धर्म आधारित शासन करे और प्रजा की रक्षा करे। इसमें नीतियों के माध्यम से समाज में संतुलन और शांति बनाए रखने की प्रेरणा दी गई है।
यह पुराण धार्मिक ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक, नैतिक और राजनीतिक दिशा भी प्रदान करता है। इसमें विष्णु और शिव — दोनों की उपासना को समान भाव से दर्शाया गया है। यह ग्रंथ व्यक्ति को नित्य कर्म, ध्यान, तपस्या, और तीर्थाटन के माध्यम से आत्मिक शुद्धि और मोक्ष की ओर प्रेरित करता है। इसकी गूढ़ता साधकों के लिए आध्यात्मिक यात्रा की दिशा दिखाती है।
ब्रह्म पुराण (Brahma Purana) केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि सनातन धर्म की एक आधारशिला है। यह न केवल सृष्टि के रहस्यों का उद्घाटन करता है, बल्कि जीवन को श्रेष्ठ, धर्ममय और सार्थक बनाने की शिक्षा भी देता है। इसकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी वह प्राचीन काल में थीं। साधना के मार्ग पर अग्रसर हर व्यक्ति को इस पुराण का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।