श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Omkareshwar Jyotirlinga): 12 ज्योतिर्लिंगों में चौथा

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Omkareshwar Jyotirlinga): 12 ज्योतिर्लिंगों में चौथा

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग: आध्यात्मिक महिमा और इतिहास ( Shree Omkareshwar Jyotirlinga : Adhyatmik Mahima Aur Itihas ):

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कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय। सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे ।।

अर्थात: जो सत्पुरुषों को संसार सागर से पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मान्धाता के पुर में सदा निवास करते हैं, उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान ओंकारेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ।

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (omkareshwar jyotirlinga) भारत के बारह प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है,ओंकार का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था. वेद पाठ का प्रारंभ भी ॐ के बिना नहीं होता है. उसी ओमकार स्वरुप ज्योतिर्लिंग श्री ओम्कारेश्वर है, अर्थात यहाँ भगवान शिव ओमकार स्वरूप में विराजित हैं l श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के नर्मदा नदी के बीच स्थित मांधाता द्वीप पर स्थित है, जिसे शिवपुरी भी कहा जाता है। इस द्वीप का आकार पवित्र “ॐ” (ओम) के प्रतीक जैसा है, जो इसे और भी आध्यात्मिक और पवित्र बनाता है।

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कथा (Shree Omkareshwar Jyotirlinga Utpatti Katha):

शिव पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में विंध्याचल पर्वत के राजा विंध्य पर्वत ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। विंध्याचल पर्वत को ऐसा प्रतीत हुआ कि वह सृष्टि में सबसे महान नहीं है, क्योंकि सुमेरु पर्वत उससे अधिक ऊँचा और महान माना जाता था। इस असंतोष को दूर करने के लिए विंध्याचल पर्वत ने भगवान शिव की आराधना करने का संकल्प लिया।

विंध्याचल ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की, जिसमें उसने शिवलिंग की स्थापना की और लगातार भगवान शिव का स्मरण करते हुए उनकी आराधना की। अंततः भगवान शिव विंध्याचल की घोर तपस्या से प्रसन्न हुए और उनके समक्ष प्रकट हुए।

भगवान शिव ने विंध्याचल पर्वत को दर्शन दिए और उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया। भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद दिया कि वह अपने सामर्थ्य और महत्व को महसूस कर सकेगा, लेकिन उन्होंने विंध्याचल को यह भी बताया कि उसे अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। इसी स्थान पर भगवान शिव ने स्वयं को दो भागों में विभाजित किया — एक “ओंकारेश्वर” और दूसरा “ममलेश्वर” ज्योतिर्लिंग के रूप में। इस प्रकार, भगवान शिव ने दो ज्योतिर्लिंगों के रूप में यहाँ प्रकट होकर इस क्षेत्र को पवित्र और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया।

श्री ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shree Mamleshwar Jyotirlinga) :

शिव पुराण में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग का भी वर्णन है। यह ज्योतिर्लिंग भी ओंकारेश्वर के पास स्थित है और इसकी पूजा का भी उतना ही महत्व है। मान्यता है कि जो भक्त इन दोनों ज्योतिर्लिंगों की आराधना करता है, उसे भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

श्री ओंकारेश्वर का धार्मिक महत्व (Shree Omkareshwar Jyotirlinga ka Dharmik Mahatav) :

ज्योतिर्लिंग का दर्शन हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से भक्तों को जीवन में सुख, समृद्धि और शांति मिलती है। श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में प्रतिदिन गुप्त रूप से शयन आरती की जाती हैं l मान्यता है कि भगवान शिव रात्रि को यहां विश्राम करने आते हैं और वे माता पार्वती के साथ चौसर भी खेलते हैं इसलिए मंदिर में विशेष शयन आरती की जाती हैं और भगवान के लिए विशेष चौसर भी बिछाया जाता हैं l

शिव पुराण के अनुसार, जो भक्त भगवान ओंकारेश्वर की पूजा करता है, उसके जीवन में कष्टों से मुक्ति मिलती है और वह मृत्यु के बाद भगवान शिव के लोक में स्थान प्राप्त करता है। यहाँ की विशेष पूजा विधि और आरती भक्तों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती है।

श्री ओंकारेश्वर मंदिर की विशेष आरती : नर्मदा आरती (Shree Omkareshwar Mandir Vishesh Aarti: Narmada Aarti)

ओंकारेश्वर मंदिर में हर शाम को नर्मदा आरती का आयोजन होता है। यह आरती नर्मदा नदी के तट पर की जाती है और इसमें सैकड़ों भक्त शामिल होते हैं। इस आरती का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है, जहाँ भक्तगण दीपों को जलाकर भगवान शिव और नर्मदा माता की स्तुति करते हैं। आरती के दौरान मंदिर परिसर में एक अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा महसूस की जाती है, जो भक्तों को भगवान शिव के और भी समीप ले जाती है।

श्री ओंकारेश्वर यात्रा का उचित समय (Best Time to Travel Omkareshwar Jyotirlinga) :

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च के बीच का होता है, जब यहाँ का मौसम अत्यंत सुखद होता है और भक्त बिना किसी कठिनाई के मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। इस दौरान यहाँ के धार्मिक कार्यक्रमों में भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है, विशेष रूप से महाशिवरात्रि के समय। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और लाखों श्रद्धालु इस अवसर पर मंदिर में आते हैं।

श्री ओंकारेश्वर में नर्मदा परिक्रमा (Shree Omkareshwar Narmada Parikrama) :

ओंकारेश्वर की यात्रा नर्मदा परिक्रमा के बिना अधूरी मानी जाती है। नर्मदा नदी को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है और एवं उनकी परिक्रमा करने से सभी पापों का नाश होता है। नर्मदा परिक्रमा की यह परंपरा सदियों पुरानी है, और भक्त नर्मदा नदी के तट पर पैदल यात्रा करके अपने पापों से मुक्ति पाने की इच्छा से इस यात्रा को करते हैं। परिक्रमा के दौरान भक्त नर्मदा के किनारे बसे कई प्राचीन मंदिरों के दर्शन भी करते हैं, जिनमें से कई का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है।

मां नर्मदा और श्री ओंकारेश्वर का सांस्कृतिक महत्व (Maa Narmada Aur Shree Omkareshwar Sanskritik Mahatav) :

ओंकारेश्वर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता का भी प्रतीक है। यहाँ की नर्मदा नदी भारतीय इतिहास और संस्कृति में एक विशेष स्थान रखती है। नर्मदा के किनारे बसे कई मंदिर और धार्मिक स्थल भारत के सांस्कृतिक धरोहरों में से एक हैं। ओंकारेश्वर मंदिर और नर्मदा नदी का संगम धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अद्वितीय है, जो श्रद्धालुओं को न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक यात्रा का अनुभव भी प्रदान करता है।

निष्कर्ष (Conclusion) :

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिकता का केंद्र भी है। यहाँ भगवान शिव की आराधना और ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से भक्तों को आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह स्थल उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो जीवन में आध्यात्मिक शांति की खोज में हैं। ओंकारेश्वर की यात्रा हर शिव भक्त के लिए एक अद्वितीय अनुभव है, जो उन्हें धर्म, आस्था और संस्कृति के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

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