यं डाकिनीशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च। सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं शंकरं भक्तहितं नमामि ।।
अर्थात जो डाकिनी और शाकिनी वृन्द में प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन भक्ति हितकारी भगवान भीम शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ।
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga), महाराष्ट्र के पुणे जिले के सह्याद्रि पर्वतों में स्थित है। यह स्थान शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और आस्था का केंद्र है। श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग न केवल एक धार्मिक तीर्थ स्थल है, बल्कि यहां की प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक शांति भी इसे विशेष बनाती है। इस मंदिर को भगवान शिव का प्रमुख धाम माना जाता है और यहाँ दर्शन के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कथा शिव पुराण में वर्णित एक प्रमुख पौराणिक कथा है। यह कथा राक्षस भीम और भगवान शिव के बीच हुई एक महान लड़ाई पर आधारित है।
कथानुसार, त्रेता युग में राक्षस भीम का जन्म कुम्भकर्ण (रावण के भाई) और करकट नामक राक्षसी के संयोग से हुआ था। भीम अपने जन्म से ही अत्यंत शक्तिशाली और क्रूर स्वभाव का था। जब उसे अपने पिता कुम्भकर्ण की राम द्वारा हत्या के बारे में पता चला, तो उसने प्रतिशोध लेने का निश्चय किया। उसने भीषण तपस्या की और ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि वह अपराजेय हो जाए।
इस वरदान के बाद भीम ने पृथ्वी पर दानवों का आतंक फैलाना शुरू कर दिया। उसने देवताओं को भी हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और उनके राज्य को नष्ट कर दिया। देवताओं की यह स्थिति देखकर वे सभी भगवान शिव की शरण में गए और उनसे प्रार्थना की कि वे भीम का विनाश करें।
उस समय एक राजा, जो भगवान शिव के परम भक्त थे l वे भगवान शिव की आराधना कर रहे थे जब भीम ने उन्हें भगवान शिव की पूजा छोड़ने को कहा, तो राजा ने मना कर दिया। इससे क्रोधित होकर भीम उन्हें मारने के लिए आगे बढ़ा, लेकिन उसी समय शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने भीम का वध कर दिया।
भीम का संहार करने के बाद, भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना पर उसी स्थान पर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करने का निर्णय लिया। तभी से भगवान शिव श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजमान हैं
श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोक्ष प्राप्ति और पापों से मुक्ति का द्वार माना जाता है। शिव पुराण के अनुसार, जो भक्त सच्चे मन से भीमाशंकर के दर्शन करते है, उन्हें शिव की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन के सभी संकट समाप्त हो जाते हैं। भक्तों की मान्यता है कि श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर में की जाने वाली पूजा-अर्चना विशेष फलदायी होती है, जिससे उन्हें जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव को यहां जलाभिषेक और बिल्वपत्र चढ़ाने की विशेष महत्ता है। ऐसा कहा जाता है कि श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग में की गई पूजा से भगवान शिव जल्द प्रसन्न होते हैं और भक्तों को उनकी मनोकामनाएं पूरी करने का आशीर्वाद देते हैं। यहां हर साल महाशिवरात्रि के अवसर पर विशेष पूजा और महाआरती का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से भक्त शामिल होते हैं। महाशिवरात्रि के दिन यहां भक्तों का भारी जनसमूह उमड़ता है और रात भर जागरण करते हुए भगवान शिव की आराधना की जाती है।
भीमाशंकर मंदिर की स्थापत्य कला अद्वितीय है। यह मंदिर नागर शैली में बना है, जिसमें काले पत्थरों का उपयोग किया गया है। मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में किया गया था और इसका शिखर अत्यंत भव्य है। मंदिर का मुख्य भाग गर्भगृह है, जहाँ भगवान शिव का दिव्य ज्योतिर्लिंग स्थित है। गर्भगृह के आसपास एक विस्तृत प्रांगण है, जहां भक्त पूजा-अर्चना करने आते हैं।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर सुशोभित मूर्तियां और नक्काशी की गई हैं, जो भारतीय स्थापत्य कला की समृद्धि को दर्शाती हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर की गई शिल्पकला भी अत्यंत सुंदर और आकर्षक है। मंदिर के पास ही बहने वाली भीमा नदी इस स्थान की पवित्रता और धार्मिक महत्व को और भी बढ़ा देती है। नदी के किनारे बैठकर ध्यान करने से भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में स्थित है, जो अपने घने जंगलों और हरे-भरे पर्वतों के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य भीमाशंकर की यात्रा को और भी आकर्षक बनाता है। चारों ओर फैली हुई हरियाली और शांत वातावरण भक्तों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है। यहां की शांति और निर्मलता भक्तों को भगवान शिव के समीप होने का अहसास कराती है। इस क्षेत्र में कई तरह के वन्यजीव भी पाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख रूप से ‘भीमाशंकर गिलहरी’ है, जो यहां की विशिष्ट प्रजातियों में से एक है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय मानसून के बाद का होता है, जब यहां की हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है। अक्टूबर से मार्च तक का समय यात्रा के लिए अनुकूल माना जाता है। इस दौरान मौसम सुखद रहता है और श्रद्धालु बिना किसी कठिनाई के मंदिर तक पहुँच सकते हैं। सावन और महाशिवरात्रि के समय यहां विशेष भीड़ होती है, और इस समय मंदिर की भव्यता और धार्मिक महत्व को महसूस किया जा सकता है।
मानसून के समय में हालांकि यात्रा के मार्ग कठिन हो सकते हैं, लेकिन इस समय यहां की सुंदरता और भी बढ़ जाती है। श्रद्धालुओं को यात्रा पर निकलने से पहले मौसम की जानकारी और आवश्यक वस्त्रों की तैयारी करनी चाहिए। भीमाशंकर यात्रा के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा कई सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, जिसमें यात्रा मार्ग, स्वास्थ्य सेवाएं और स्थानीय मार्गदर्शक शामिल हैं।
श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग न केवल भगवान शिव के अनन्य भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल है, बल्कि यह एक ऐसा स्थान भी है, जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक शांति एक साथ मिलते हैं। यहाँ की यात्रा भक्तों के लिए एक अद्वितीय अनुभव होती है, जो उन्हें भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद से संपन्न करती है। चाहे आप धार्मिक आस्था के साथ यहाँ आएं या प्रकृति की गोद में आध्यात्मिक शांति की तलाश में, भीमाशंकर मंदिर आपको आत्मिक और मानसिक शांति प्रदान करने के लिए अद्वितीय स्थान है।
यहाँ की यात्रा हर श्रद्धालु के जीवन में एक अटूट आस्था और भक्ति का अनुभव जोड़ती है, जो उन्हें भगवान शिव के प्रति समर्पित करती है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्तों के जीवन में सकारात्मकता और शांति का संचार होता है, और वे मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होते हैं।
श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिए आप उनकी official website visit कर सकते हैं l
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