सनातन धर्म में जब-जब अधर्म बढ़ता है और धर्म का नाश होने लगता है, तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतार लेकर संसार की रक्षा करते हैं। उनके दस प्रमुख अवतारों (दशावतार) में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवतार है – वराह अवतार। इस अवतार में श्रीहरि ने एक विशाल दिव्य वराह (शूकर) का रूप धारण कर धरती को रसातल से उठाया और अधर्म के प्रतीक हिरण्याक्ष का वध किया।
वराह अवतार का वर्णन श्रीमद्भागवत महापुराण (स्कंध 3, अध्याय 13-19) में मिलता है। यह कथा न केवल धर्म और अधर्म के संघर्ष की कहानी है, बल्कि यह प्रकृति, पृथ्वी माता और ब्रह्मांडीय संतुलन की रक्षा का भी संदेश देती है। आइए इस पवित्र कथा को विस्तार से जानते हैं।
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Toggleवराह अवतार की कथा (श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार) | Varah Avtar Ki Katha
हिरण्याक्ष का अत्याचार और पृथ्वी का रसातल में गिरना | Hiranyaksha ka Atyachar Aur Prathvi Ka Rasatal me jana
सृष्टि के प्रारंभिक काल में, ब्रह्माजी के संकल्प से कश्यप और दिति के पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु उत्पन्न हुए।
हिरण्याक्ष अत्यंत बलशाली और अहंकारी था। उसने अपनी शक्ति से तीनों लोकों में आतंक मचा दिया और समुद्र में घुसकर वरुण देव को चुनौती दी।
जब वरुण देव ने उसे यह कहकर रोक दिया कि “तुम्हारा सामना केवल भगवान विष्णु से हो सकता है”, तब हिरण्याक्ष ने पूरे ब्रह्मांड को भयभीत करने के लिए पृथ्वी (भूदेवी) को अपने बल से रसातल में धकेल दिया।
भगवान विष्णु का वराह अवतार धारण करना | Bhagwan Vishnu Ka Varah Avatar Dharan Karna
जब ब्रह्माजी ने देखा कि पृथ्वी रसातल में चली गई है और असुरों का अत्याचार बढ़ रहा है, तब उन्होंने श्रीहरि की स्तुति की।
तभी भगवान विष्णु ने अंगूठे के आकार के एक छोटे से वराह रूप में प्रकट होकर क्षण भर में विशालकाय रूप धारण कर लिया। उनका शरीर पर्वत के समान विशाल, स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और शक्ति अपार थी। वे गर्जना करते हुए समुद्र में कूदे और अपनी विशाल दाढ़ों में पृथ्वी को उठाकर जल से बाहर निकालने लगे।
श्रीमद्भागवत महापुराण (3.13.31-32) में वर्णित है:
“भगवान वराह ने अपनी दाढ़ों में पृथ्वी को उठाकर जल से बाहर निकाला। उनके मुख से वेदों का उच्चारण हो रहा था, और देवताओं ने उनकी स्तुति की।”
हिरण्याक्ष और वराह भगवान का युद्ध | Hiranyaksha Aur Varah Bhagwan Ka Yuddh
जैसे ही भगवान वराह पृथ्वी को उठाने लगे, हिरण्याक्ष ने उन्हें रोकने का प्रयास किया | उसने भगवान वराह का मज़ाक उड़ाते हुए कहा – “हे जंगली पशु! तुम मुझे पहचानते नहीं। मैं तीनों लोकों का स्वामी हूँ। मुझसे युद्ध करो!” भगवान वराह ने धैर्यपूर्वक पृथ्वी को सुरक्षित स्थान पर स्थापित किया और फिर हिरण्याक्ष से भयंकर युद्ध किया। दोनों के बीच सहस्त्रों वर्षों तक घोर संग्राम हुआ।
हिरण्याक्ष का वध | Hiranyaksha Ka Vadh
अंततः भगवान वराह ने अपनी दिव्य गदा (मूसल) से हिरण्याक्ष के सिर पर प्रहार किया, जिससे वह तुरंत मृत्यु को प्राप्त हुआ।
श्रीमद्भागवत महापुराण (3.19.25) में कहा गया है:
“भगवान वराह ने अपनी गदा से हिरण्याक्ष का वध किया। उसके मरते ही समस्त देवता आनंदित हुए और पृथ्वी पुनः संतुलित हो गई।“
वराह अवतार का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व | Varah Avtar Ka Adhyatmik Aur Dharmik Mahatav
अधर्म पर धर्म की विजय
हिरण्याक्ष अहंकार और अधर्म का प्रतीक था, जबकि भगवान वराह धर्म और न्याय के रक्षक हैं। यह कथा हमें सिखाती है कि अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः धर्म की विजय होती ही है।
पृथ्वी माता की रक्षा
वराह अवतार हमें यह भी सिखाता है कि पृथ्वी (प्रकृति) की रक्षा करना परम कर्तव्य है। जब भी पृथ्वी संकट में होगी, भगवान स्वयं अवतार लेकर उसकी रक्षा करेंगे।
दैवीय शक्ति और भक्ति का महत्व
- जो व्यक्ति भगवान विष्णु के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति रखता है, उसे किसी भी संकट से डरने की आवश्यकता नहीं।
- भक्तों के कल्याण के लिए भगवान विष्णु किसी भी रूप में अवतार ले सकते हैं।
वराह अवतार की पूजा और उत्सव | Varah Avtar Ki Pooja Aur Utsav
- वराह अवतार की पूजा विशेष रूप से भाद्रपद मास की द्वादशी तिथि को की जाती है, जिसे वराह द्वादशी कहते हैं।
- इस दिन भक्त भगवान विष्णु के वराह स्वरूप की पूजा, व्रत और दान करते हैं।
- भारत में कई स्थानों पर वराह भगवान के मंदिर स्थित हैं, जिनमें वराह मंदिर (खंडवा, मध्यप्रदेश), तिरुवाहिंद्रपुरम (तमिलनाडु), और पुष्कर (राजस्थान) के वराह मंदिर प्रमुख हैं।
निष्कर्ष | Conclusion
Bhagwan Vishnu Ka Varah Avtar : भगवान विष्णु का वराह अवतार केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक सीख है। यह हमें सिखाता है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए किसी भी रूप में अवतरित हो सकते हैं।
“जो व्यक्ति वराह अवतार की कथा को श्रद्धा से सुनता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर श्रीहरि की कृपा प्राप्त करता है।”
“जय श्री हरि! जय वराह भगवान!”
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