श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (Shri Kedarnath Jyotirlinga): 12 ज्योतिर्लिंगों में पांचवा

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (Shri Kedarnath Jyotirlinga): 12 ज्योतिर्लिंगों में पांचवा

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग: श्रद्धा और आस्था का प्रतीक (Kedarnath Jyotirlinga : Sharddha Aur Astha ka Pratik )

kedranath jyotirlinga

महाद्रिपार्श्चे च तट रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रै:। सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे ।।

अर्थात– जो महागिरि हिमालय के पास केदारश्रृंग के तट पर सदा निवास करते हुए मुनीश्वरो द्वारा पूजित होते हैं तथा देवता, असुर, यज्ञ और महान सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं, उन एक कल्याणकारक भगवान केदारनाथ का मैं स्तवन करता हूँ।

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (Kedarnath Jyotirlinga) धाम हिमालय की ऊंचाई पर स्थित भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है l उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में मंदाकिनी नदी के किनारे बसा यह तीर्थस्थल हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं है, बल्कि ज्योतिर्लिंग की स्थिति और कठिनाईपूर्ण यात्रा भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक परीक्षण मानी जाती है। केदारनाथ धाम तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को दुर्गम पर्वतीय मार्गों से होकर गुजरना होता है, जो उनके समर्पण और श्रद्धा की गहराई को दर्शाता है।

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग  कथा (Shri Kedarnath Jyotirlinga Utappati Katha )

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएं हैं। शिव पुराण में बताया गया है कि भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ने बद्रिकाश्रम में घोर तप किया जिससे प्रसन्न हो भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और वरदान मांगने को कहा , तब नर नारायण ने लोककल्याण के लिए सदा शिव शंकर से यही विराजमान होने की प्रार्थना करी तभी से भगवान शिव केदारखंड अपर ज्योतिरूप में विराजित हैं l    

एक अन्य कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने पापों से मुक्त होने के लिए भगवान शिव की आराधना करने हिमालय पहुंचे। लेकिन भगवान शिव   पांडवों से नाराज थे और उनसे मिलने से बचने के लिए उन्होंने केदार में एक बैल का रूप धारण कर लिया। पांडवों को इसका आभास हो गया और भीम ने बैल के पिछले हिस्से को पकड़ने का प्रयास किया, जिससे भगवान शिव के शरीर के अंग विभिन्न स्थानों पर बिखर गए। यह माना जाता है कि जहां-जहां शिव के अंग गिरे, वहां-पंच केदारों का निर्माण हुआ। केदारनाथ उन पंच केदारों में से प्रमुख है, जहां भगवान शिव का पृष्ठभाग पूजित है।

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व (Shri Kedarnath Jyotirlinga Dharmik Mahatav)

केदारनाथ का धार्मिक महत्व सिर्फ पौराणिक कथाओं से ही नहीं जुड़ा है, बल्कि यहां की पवित्रता और वातावरण भी इसे विशेष बनाता है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को मोक्ष का द्वार कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां शिवजी के दर्शन मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए यहां हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी मुक्ति की कामना लेकर आते हैं और भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।

शिव पुराण के अनुसार, केदारनाथ की यात्रा जीवन के सभी दुखों से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। इस धाम के दर्शन करने से जीवन की कठिनाइयों का अंत होता है और व्यक्ति को भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है। केदारनाथ में की जाने वाली पूजा-अर्चना विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है, जिससे भक्तों को सांसारिक बंधनों से मुक्ति और आध्यात्मिक शांति की प्राप्ति होती है।

श्री केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला (Shri Kedarnath Mandir Vastukala)

केदारनाथ मंदिर की स्थापत्य कला अत्यंत अद्वितीय और प्राचीन है। यह मंदिर 8वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था, और आज भी अपनी पुरानी शैली में स्थित है। मंदिर के निर्माण में विशाल शिलाखंडों का उपयोग किया गया है, जो इसे प्राकृतिक आपदाओं से भी सुरक्षित रखते हैं। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 3580 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां का वातावरण अत्यंत शीतल और पवित्र होता है।

मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग रूप में विराजित भगवान शिव अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजे जाते है। इस शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है l श्री केदारनाथ की पूजा-अर्चना विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। केदारनाथ मंदिर के चारों ओर फैली हुई प्राकृतिक सुंदरता इसे और भी दिव्य और आध्यात्मिक बनाती है। मंदिर के चारों ओर बर्फ से ढके पर्वत, मंदाकिनी नदी और हरे-भरे जंगल मंदिर की आध्यात्मिकता को और भी गहरा करते हैं।

श्री केदारनाथ यात्रा: श्रद्धालुओं के लिए एक कठिन परीक्षा (Shri Kedarnath Yatra) :

केदारनाथ धाम की यात्रा करना किसी भी श्रद्धालु के लिए आसान कार्य नहीं है। यहां की यात्रा कठिनाइयों और चुनौतियों से भरी होती है, लेकिन इसके बावजूद श्रद्धालु अपनी आस्था और विश्वास के बल पर श्री केदारनाथ धाम की यात्रा को पूरा करते हैं। केदारनाथ धाम तक पहुंचने के लिए गौरीकुंड से 16 किलोमीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है, जो अत्यंत कठिन मानी जाती है। लेकिन इस यात्रा के दौरान जो प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलते हैं, वे इस कठिनाई को भुला देते हैं।

यात्रा के दौरान श्रद्धालु हिमालय की पवित्र ऊंचाइयों को निहारते हुए आगे बढ़ते हैं, जो उन्हें भगवान शिव के करीब होने का अहसास कराता है। यह यात्रा भक्तों के लिए न केवल एक धार्मिक यात्रा होती है, बल्कि यह उनके आत्म-संयम और श्रद्धा की परीक्षा भी होती है। जिस तरह से वे इस कठिन यात्रा को पार करके भगवान शिव के दर्शन करते हैं, वह उनके विश्वास को और भी दृढ़ बनाता है। 

केदारनाथ धाम और प्राकृतिक आपदाएं (Kedarnath Dham Aur Prakratik Apdaye) :

केदारनाथ धाम ने 2013 में आई भयानक बाढ़ का सामना किया था, जिसने यहां की संरचना और यात्रा को बुरी तरह प्रभावित किया। इस प्राकृतिक आपदा के बावजूद, श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास में कोई कमी नहीं आई। सरकार और प्रशासन ने मंदिर का पुनर्निर्माण और यात्रा मार्गों को सुचारू करने का कार्य किया, जिससे श्रद्धालु फिर से इस पवित्र धाम की यात्रा कर सकें।

बाढ़ के बाद केदारनाथ मंदिर की पुनर्स्थापना और यात्रा मार्गों का सुधार हुआ, लेकिन यह स्थान अभी भी अपनी प्राचीनता और दिव्यता को बनाए हुए है। इस आपदा के बावजूद केदारनाथ का धार्मिक महत्व और श्रद्धालुओं का विश्वास अटूट बना रहा। यहां की पवित्रता और भगवान शिव की उपस्थिति की अनुभूति से भक्तों का मनोबल और आस्था और भी बढ़ जाती है

श्री केदारनाथ यात्रा का उचित समय : (Best Time to Travel for Shri Kedarnath Yatra)

दर्शन के समय: (Darshan ka Samay)

  • सुबह के दर्शन: मंदिर सुबह 6:00 बजे से खुलता है।
  • आरती: मंगला आरती सुबह 4:00 से 5:00 बजे तक होती है। दोपहर में 3:00 बजे से 5:00 बजे तक विश्राम का समय होता है।
  • शाम के दर्शन: 5:00 से 7:00 बजे तक।
  • विशेष पूजा: विशेष पूजा के लिए सुबह का समय उपयुक्त है, जिसमें पंडितों द्वारा विशेष मंत्रोच्चारण होता है।

यात्रा की सुविधा: (Yatra Ki Suvidha )

  • पंजीकरण: यात्रा के लिए पंजीकरण अनिवार्य है। इसे ऑनलाइन और यात्रा मार्ग पर कर सकते हैं।

यात्रा मार्ग: केदारनाथ मंदिर गौरीकुंड से 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद पहुंचा जा सकता है। यात्रा मार्ग पर खाने-पीने की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

हेलिकॉप्टर सेवा: (Helicopter Seva)

वर्तमान में हेलिकॉप्टर सेवाएं भी उपलब्ध हैं, जो गौरीकुंड से सीधे केदारनाथ तक यात्रा को सुगम बनाती हैं। यात्रियों को पहले से बुकिंग करनी होती है।

केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होने की तिथि: (Kedarnath Mandir ke Kapat Band Hone Ki Tithi ) :

कार्तिक पूर्णिमा के दिन (आमतौर पर नवंबर में) के बाद मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं और भगवान शिव की मूर्ति ऊखीमठ में ले जाई जाती है, जहां शीतकालीन पूजन होता है l

निष्कर्ष (Conclusion) :

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग एक ऐसी पवित्र स्थली है, जहां आकर भक्त भगवान शिव की कृपा प्राप्त करते हैं और अपने जीवन को संवारते हैं। यह स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक वातावरण भी भक्तों को शांति और मोक्ष की ओर प्रेरित करता है। केदारनाथ की यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, आस्था और आत्म-संयम की यात्रा है, जो भक्तों को भगवान शिव के और निकट ले जाती है।

आप केदारनाथ की official website पर जाकर पंजीकरण, यात्रा के नियम और समय की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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