ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirlinga), भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। यह स्थल धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। “ओंकारेश्वर” का अर्थ है “ॐ के ईश्वर”, जो ब्रह्मांड के मूल स्वरूप और शिव की अनंत शक्ति का प्रतीक है। यहां स्थित मंधाता पर्वत का स्वरूप “ॐ” जैसा है, जो इसे और भी पवित्र बनाता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा और कावेरी नदियों के संगम पर स्थित है। इसे “मंधाता पर्वत” के नाम से जाना जाता है। नर्मदा नदी, जिसे “जीवनदायिनी” कहा जाता है, इस स्थल को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती है। यहां दर्शन और नर्मदा में स्नान का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे सभी पापों को नष्ट करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।
शिव पुराण के अनुसार, एक बार विंध्य पर्वत ने अपने आस-पास के पर्वतों से छोटा होने के कारण हीन भावना महसूस की। उसने भगवान शिव की कठोर तपस्या करने का निश्चय किया। विंध्य पर्वत ने शिवलिंग बनाकर उसके चारों ओर 108 नदियों से अभिषेक किया और “ॐ नमः शिवाय” का जप करते हुए कठोर तपस्या की।
भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगेने को कहा। विंध्य पर्वत ने प्रार्थना की कि भगवान शिव उनके पास सदा के लिए निवास करें। शिवजी ने प्रसन्न होकर यहां ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थान उनके भक्तों को सभी प्रकार के पापों से मुक्त करेगा और उन्हें मोक्ष प्रदान करेगा।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का महत्व धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोण से बहुत बड़ा है।
ओंकारेश्वर की यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे अच्छा है। शिवरात्रि और सावन के महीने में यहां विशेष आयोजन होते हैं, जब श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग एक ऐसा स्थल है, जहां भक्त भगवान शिव की अनंत शक्ति का अनुभव कर सकते हैं। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी एक आदर्श स्थान है। मंधाता पर्वत और नर्मदा नदी के संगम पर स्थित यह मंदिर हर शिव भक्त के लिए दर्शन करने योग्य है। यहां आकर भक्त आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं और भगवान शिव की कृपा से अपने जीवन में नई ऊर्जा का अनुभव करते हैं।
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